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अध्याय १८
होशयारपुर क दिनौली का चतुर्मास
जालन्धर से विहार करके आप होशयारपुर पधारे और १९२३ का चतुर्मास होशयारपुर में किया। इस चतुर्मास में भक्त नत्थुमल, बिल्लामल और मानमल आदि बहुत से पुरुषों ने आप से शुद्ध सनातन जैनधर्म की श्रद्धा को अंगीकार किया, तथा पहले से श्रद्धा रखने वाले लाला गुजरमल आदि कितने एक गृहस्थों के धार्मिक विचारों को दृढ़ता प्राप्त हुई । सत्य है महापुरुष जहां जाते हैं वहां उपकार ही होता है।
चतुर्मास की समाप्ति के बाद आप ने दिल्ली की ओर विहार किया। दिल्ली में कुछ दिन ठहर कर वहां से यमुना नदी के पार बिनौली विचरते हुए पधारे और १६२४ का चतुर्मास बिनौली ग्राम में किया। इस ग्राम में भी आप ने कई एक गृहस्थों को शुद्ध सनातन जैनधर्म में प्रविष्ट किया । और यहीं पर आपने "नवतत्त्व" ग्रन्थ का निर्माण करना आरम्भ किया जो कि बडौत के चतुर्मास में सम्पूर्ण हुआ।
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