SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कलह का सुन्दर परिणाम १२६ इस प्रकार श्री आत्मारामजी के गुरुभाई और शिष्य दोनों ही ढूँढक मत का त्याग करके प्राचीन जैन परम्परा में दीक्षित होगये और क्रमशः खांतिविजय और विवेकविजय के नाम से विचरते रहे । अभी तक सर्वसाधारण इस बात से अपरिचित ही थे कि श्री आत्मारामजी की आस्था ढूँढक मत से उठ चुकी है । परन्तु श्री गणेशीलाल-विवेकविजय जी ने इस बात को आम जनता में फैलाना शुरु कर दिया। वे जहां जाते वहां पर इसी बात का प्रचार करते और कहते कि श्री आत्मारामजी को अब ढूँढक मत की श्रद्धा नहीं रही, वे तो सर्वेसर्वा शद्ध सनातन जैन धर्म के अनुगामी हैं। प्रत्यक्ष में तो उनका वेष और व्यवहार ढूँढक मत का ही है परन्तु अन्दर से तो आप मूर्तिपूजा के अनुरागी और मुँहपति बांधने के विरोधी हैं । यद्यपि श्री गणेशीलाल-विवेकविजय जी का उक्त कथन यथार्थ ही था परन्तु अबोधजनता पर इसका प्रभाव उलटा हुआ और लाभ के बदले हानि अधिक हुई । इनके उक्त कथन को सुनकर उसके परमार्थ को समझे बिना बहुत से लोगों ने श्री आत्मारामजी के पास जाना छोड़ दिया और उनके सम्पर्क से प्राप्त होनेवाले सद्बोध से वे वंचित रह गये। बैसे ढूंढक पंथ से श्रास्था तो इनकी वि० सं० १८६३ से ही हट चुकी थी, इसलिए उक्त सम्वत् का उल्लेख विधिपूर्वक प्राचीन जैन परम्परा में दीक्षित होने की अपेक्षा से जानना । इनके अनेक शिष्य हुए जिन में पांच अधिक प्रसिद्ध हैं:-(१) श्री मुक्ति विजय जी गणी (श्री मूलचन्दजी) (२) श्री वृद्धिविजयजी (श्री वृद्धिचन्द जी) (३) श्री नीतिविजय जी (४) श्री खांतिविजयजी और (५) श्री विजयानन्दसूरि (श्रात्मारामजी) जोकि इस जीवन गाथा के नायक हैं। टूढक मत का परित्याग करके आपने इन्हीं महात्मा के पास शद्धसनातन जैनधर्म के साधु चेष को अंगीकार किया था। इन मह स्मा के जीवन विषयक अधिक जानने की इच्छा रखने चाले इनकी बनाई हुई मुहपती चर्चा नाम की पुस्तक का अवलोकन करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy