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________________ अध्याय १७ "कलह का सुन्दर परिणाम " उक्त एकान्त वार्तालाप के कुछ दिन बाद पूज्य श्री अमरसिंहजी तो पट्टी को बिहार कर गये और श्री आत्मारामजी ने श्री विश्रचन्दजी आदि को साथ लेकर अमृतसर से जालन्धर को बिहार किया । इधर खैरायतीमल - (आत्मारामजी का गुरु भाई) और गणेशीलाल (श्री आत्मारामजी का शिष्य) नाम के दो साधु कितने ही दिन पहले अमृतसर से होशियारपुर चले आये थे। वहां इन दोनों का आपस में किसी बात पर कलह हुआ जिससे गणेशीलाल तो मुँहपति का डोरा तोड़कर श्री आत्मारामजी को मालूम किये बिना ही होशियारपुर से चलकर गुजरांवाले में पहुंच गया और वहां पर विराजमान प्राचीन जैन परम्परागत तपगच्छ के संवेगी साधु मुनि श्री बुद्धिविजय जी (बूटेरायजी ) के पास प्राचीन जैन धर्म की दीक्षा लेली और खैरायतीमल मारवाड़ होता हुआ गुजरात में चला गया और श्री मणीविजय जी महाराज के पास दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा होने के बाद उसका श्री खांतिविजय यह नाम रक्खा गया। इधर श्री बूटेरायजी ने गणेशीलाल को जैन धर्म की दीक्षा देकर उसका विवेकविजय यह नाम निर्धारित किया । * इन महात्मा का जन्म पंजाब देश के लुधियाना तहसील के वलीलपुर ग्राम के नजदीक दक्षिण दिशा की र सात आठ कोस की दूरी पर ग्रानेवाले डलुवां ग्राम के रईस टेकसिंह नाम के जमीदार-जाट के घर उनकी कमाँ नाम की स्त्री की दक्षिण कुक्षि से विक्रम संवत् १८६३ में हुआ था ! इन्होंने माता की आज्ञा से वि० सं० १८ में श्री मलूकचन्द जी के टोले के नागरमल नामा साधु के पास हृ ढक मत की दीक्षा अंगीकार करी । परन्तु कुछ समय बाद शास्त्रों के अभ्यास से तथा देश देशान्तरों में भ्रमण करते हुए स्थान २ पर उपलब्ध होने वाले प्राचीन जिनमन्दिरों के अवलोकन से उन्हें यह ढूंढक मत अत्यन्त अर्वाचीन प्रतीत होने लगा और उसका सारा श्राचार विचार शास्त्रविपरीत अथच मन:कल्पित सा जान पडा। इस लिए उक्त मत के साधु वेष का परित्याग करके गुजरात देश के प्रख्यात नगर अहमदाबाद में जाकर अनुमान वि० सं० १६११-१३ में गणी श्री मरिविजयजी महाराज के पास शुद्ध सनातन जैनधर्म की साधु दीक्षा स्वीकार की अर्थात् उक्त महात्मा को गुरु धारण किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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