________________
स्पष्ट वादिता
श्री हरिभर्तरीजी ने ऐसे पुरुषों के लिए बहुत अच्छा कहा है
अज्ञः सुख माराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः ।
ज्ञान लवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि तं नरं न रंजयित शक्तः ॥ अर्थात् अज्ञ पुरुषों को समझाना सुकर है और जो विशेषज्ञ है उसको समझाना तो और भी सुकर है । परन्तु जो ज्ञानलवदुर्विदग्ध है अर्थात इधर उधर के दो चार पुस्तक पढ़कर अपने समान दूसरे को नहीं मानता ऐसे कदाग्रही व्यक्ति को तो ब्रह्मा भी समझा नहीं सकता सामान्य पुरुष की तो बात ही अलग है । तात्पर्य कि श्री आत्माराम जी का उक्त सत्य और हितकारी कथन श्री अमरसिंह को सद् विचार की ओर लेजाता परन्तु उसके बदले उन पर इसका उलटा असर हुआ जो कि उनकी प्रकृति के अनुरूप ही था।
CINEMA
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org