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अध्याय १५
अजीव पंथियों से चर्चा
इधर श्री विश्वचन्दजी चम्पालाल और हाकमरायजी आदि साधुओं ने श्री आत्मारामजी को मिलने के लिये पट्टी से लुधियाने की ओर विहार किया, उधर श्री आत्मारामजी ने अजीव पन्थी साधु श्री रामरत्न और बसन्तरामजी के साथ धर्मचर्चा करने के लिए लुधियाने से जालन्धर को विहार किया और सबका मिलाप जालन्धर में होगया । जैसाकि पहले बतलाया गया है पंजाब में ढूँढक मत के साधुओं में जीव पन्थी और अजीव पन्थी नाम से दो मत प्रचलित हैं । अजीव पन्थी साधु सूखे हुए गेहूं और चनों आदि के बीजों में जीव का अस्तित्व नहीं मानते इस लिए वे अजीव पंथी के नाम विख्यात है जबकि दूसरे इनमें जीव की सत्ता को मानते हैं इसलिए वे जीवपंथी के नाम से प्रसिद्ध हैं । उस समय ढूँढक सम्प्रदाय में इस विषय की बहुत चर्चा प्रचलित थी। इसी कारण श्री आत्मारामजी के साथ अजीव पंथ के साधु श्री रामरत्नजी और वसन्तरामजी का उक्त विषय पर शास्त्रार्थ होना निश्चित हो चुका था । जालन्धर में इस धर्मचर्चा या शास्त्रार्थ को सुनने के लिए पंजाब के लगभग २७ शहरों के श्रावक एकत्रित हुए थे और कई एक विद्वान पंडितों को मध्यस्थ नियत किया गया था । समय पर सब उपस्थित होगये और दोनों ओर के चर्चा करने वाले साधु भी सभा में पहुंच गये और वार्तालाप आरंभ हुआ ।
इस वार्तालाप में श्री आत्मारामजी का पक्ष बहुत प्रबल रहा और उन्हीं के पक्ष में मध्यस्थों ने अपना निर्णय दिया जिसके कारण उनकी विजय हुई और रामरत्न तथा वसन्तराम जी आदि पराजित हुए * इतने पर भी उन्होंने अपने हठ का त्याग नहीं किया ! सत्य है "स्वभावोदुरितक्रमः" जिसका जो स्वभाव होता है वह दूर नहीं होता । इसी लिये कदाग्रही व्यक्ति सत्य से वंचित रहता है।
* इस चर्चा में दोनों ओर से जो कुछ कहा गया और प्रमाणरूप में जिन ग्रन्थों के लेख उपस्थित किये गये उनका दिग्दर्शन परिशिष्ट में कराया जायगा । ( लेखक )
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