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नवयुग निर्माता
___श्री अमीचन्दजी-पिता जी सत्य तो यह है कि श्री विश्नचन्दजी महाराज जो कुछ फर्मा रहे हैं वही शास्त्र सम्मत सत्य है और जो श्री पूज्य अमरसिंह और उनका शिष्यवर्ग कहता है वह तो शास्त्रों के बिलकुल विपरीत है । ये लोग शब्द शास्त्र के बोध से शून्य हैं । इस लिए पद पदार्थ का स्वयं तो इनको ज्ञान होता नहीं। जिस किसी ने भी जैसा बतला दिया उसी को यह सत्य मान बैठे हैं और श्री विश्नचन्दजी महाराज जो कुछ फर्मा रहे हैं वह यथार्थ और अागम सम्मत है, इस लिए आपको उसी पर विश्वास करना चाहिये।
पुत्र के इन वचनों ने लाला घसीटामल के हृदय में बैठे हुए विपरीत श्रद्धान को दूर करने में बड़ा चमत्कार दिखाया। वे उसी वक्त श्री विश्नचन्दजी के चरणों में गिर कर बोले-गुरुदेव ! मैं आपका बहुत कृतज्ञ हूँ। आपने मुझपर जो कृपा की है-और धर्म के विषय में मुझे जो नया जीवन दिया है उससे मैं आपका
आजन्म ऋणी रहूँगा। आज से मैं श्राप श्री के सदुपदेश का सच्चे मनसे पालन करने का यत्न करूंगा। लाला घसीटामल की देखादेखी वहां के कई एक और गृहस्थों ने भी जैन धर्म का शुद्ध श्रद्धान अंगीकार किया।
और आपके सुपुत्र श्री अमीचन्दजी व्याकरण के अच्छे ज्ञाता होकर गुजरात मारवाड़ और पंजाब में पंडित अमीचन्दजी के नाम से विख्यात हुए संवेगी परम्परा में दीक्षित होने के बाद श्री आत्मारामजी के जितने भी नवीन शिष्य हुए उनमें से शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने पंडित अमीचन्दजी के पास थोड़ा बहुत अध्ययन न किया हो।
इस प्रकार पट्टी नगर में जैन धर्म की श्रद्धा का बीज वपन करने के बाद श्री विश्नचन्द, चम्पालाल हाकमराय और निहालचन्दजी आदि ने महाराज श्री आत्मारामजी को मिलने के लिये लुधियाने की ओर विहार किया।
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