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नवयुग निर्माता
बैठकर मनन करना, यदि कोई शंका रहगई हो तो उसे फिर पूछ लेना, जब तक कोई बात हृदय में पूरी तरह घर कर जावे अर्थात् वह युक्तियुक्त प्रतीत न होवे तब तक उसे स्वीकार करने की भूल न करना एवं जो वस्तु शास्त्र और युक्ति द्वारा सत्य प्रमाणित हो उसे अपनाने में किसी प्रकार का संकोच न करना ही विचार और विवेक प्रवरण मनोवृत्ति की कसौटी है । इसीसे साधक का आत्मा प्रगति की ओर प्रस्थान करने की योग्यता वाला बनता है। अच्छा अब आज का सत्संग समाप्त हुआ बाकी की विषय- विवेचना कल के लिये स्थगित रक्खो । तब सब बन्दना करके अपने स्थान- उपाश्रय की ओर चल दिये ।
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