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________________ - ---- साधु वेष का शास्त्रीय विवरण फर्माया है उसमें हमें बहुत कुछ जानने को मिला है परन्तु आरम्भ में जो प्रसंग चला था-साधु के उपकरणों का-कृपा करके अब उसी का स्पष्टीकरण कीजिये । श्री आत्मारामजी-प्रश्नव्याकरणसूत्र में से उपकरण सम्बन्धी पाठ का पत्रा निकाल कर देखो भाई ! साधु के उपकरणों से सम्बन्ध रखने वाला वह आगम पाठ यह है । लो ! देखो और पढ़ो यथा"पडिग्गहहो (१) पायबंधण (२) पाय केसरिया (३) पायट्ठवणंच (४) पडलाइं तिन्निव (५) रयत्ताणं (६) गोच्छाश्रो (७) तिन्निय पच्छागा (१०) रोहरणं (११) चोलपट्टक (१२) मुहणंतक (१३) मादीयं (१४) एयंपीय संजमस्स उवबूहणट्ठयाए ।” अच्छा अब इसका परमार्थ सुनो ! जिसकी तुम सबको आवश्यकता है-(१) पडिग्गहो-पात्र (२)पायबंधण-पात्रबन्धन-झोली (३) पायकेसरिया-पात्र केसरिका अर्थात पूंजने-साफ करने का सोलह अंगुल का वस्त्र (अपने लोग इसके स्थान में पूंजणी रखते हैं) (४) पाय ठवणं-पात्र स्थापन-पात्रे के नीचे रखने का मोलह अंगुल का लम्बा चौड़ा ऊनका टुकड़ा, जो कि विहार में पात्रे बान्धने का काम देता है, अपने इसके स्थान में आहार करते समय कपड़ा बिछाते हैं जिसको मांडला कहते हैं (५) पड़लाई तिन्नेवतीन पड़ले, जो कि गोचरी को जाते समय झोली के ऊपर दिये जाते हैं, ताकि उड़ते हुए मक्खी मच्छर आदि जीव उडकर झोली में न पड़ें। चम्पालाल--कृपानाथ ! आपने जो तीन पड़ले कहे हैं उनकी समझ नहीं आई, वे झोली पर कैसे दिये जाते हैं, या उनसे झोली कैसे ढकी जाती है ? श्री आत्मारामजी-भाई ! अपने लोग गोचरी जाते समय जिस तरह झोली लेते हैं, वह शास्त्रसम्मत नहीं है । और जब हम झोली को हाथ में लटका कर रखते हैं तो उस पर पड़ले कहां रक्खे जावें ? इसीलिए हम लोग पड़ले नहीं रखते, परन्तु झोली रखने की शास्त्रीय विधि और है । मैंने मन्दिराम्नाय के एक यतिजी को गोचरी जाते हुए देखा तो उनकी झोली कहीं नज़र नहीं आई । तब मैंने उनसे कहा कि यतिजी महाराज ! आप गोचरी के लिए जा रहे हैं, परन्तु आप के पास झोली तो दीखती नहीं । तव जब उसने कपड़ा [ ऊपर ली हुई चादर ] उठाकर दिखाया तो देखा कि दाहिना हाथ लम्बा किया हुआ है और बायें हाथ में मोली लटकाई हुई है और उसके ऊपर कपड़ा दिया हुआ है । पूछने पर उसने कहा कि इस कपड़े को पड़ला कहते हैं, गर्मी के मौसम में तीन रखते हैं शीतकाल में पांच और चौमासे के दिनों में सात रखते हैं। इसका प्रयोजन उड़ते हुए जीवों की और आहार की रक्षा है. वर्षाकाल में कभी अचानक बारिश आजावे तो पानी के छींटे आहार पर न पडें एतदर्थ यह झोली पर दिया जाता है । इतना संभाषण करने के अनन्तर आपने उसी माफिक झोली को हाथ में लटका ऊपर कपड़ा डालकर सबको दिखाया जिसे देख कर सब आश्चर्य चकित हप और कहने लगे कि इतने वर्ष हुए इस पंथ चले को फिर भी पड़ला सम्बन्धी ज्ञान किसी को नहीं। हो भी कैसे ? जव कि इस वस्तु का हमारे यहां व्यवहार ही नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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