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करना चाहता हूँ जो चिरकाल तक मेरे हित सुख के लिये हो । पुरोहित ने कहा इसके लिये आप प्रजा से अनुमति लें । प्रजा को अनुमति मिलने पर पुरोहित ब्राह्मण ने महायज्ञ की तैयारी की, लेकिन पहले राजा को तीन विधियों का उपदेश दिया
१. आप यह अफसोस न करें कि इस यज्ञ में बड़ो धन राशि चली जायेगी । २. यज्ञ करते हुए यह अफसोस न हो कि बड़ी धनराशि जा रही है । ३. यज्ञ कर चुकने पर यह अफसोस न हो कि बड़ो धन राशि चलो गयी ।
पुरोहित ने यज्ञ से पूर्व राजा महाविजित के हृदय से दस प्रकार के विप्रतिसार अलग कराये और सोलह विधियों से राजा के चित्त को समुत्तेजित किया । उस यज्ञ के बारे में भगवान ने बताया- "ब्राह्मण उस यज्ञ में गायें नहीं मारी गयीं, बकरे भेड़े नहीं मारी गयीं, मुर्गे, सूअर नहीं मारे गए, न नाना प्रकार के प्राणी मारे गए। न यूप के लिए वृक्ष काटे गए, न पर हिंसा के लिए दर्भ काटे गए। जो भी उसके दास, प्रेष्य, कर्मकार थे उन्होंने भी दंड तजित, भय तर्जित हो अश्र ु मुख, रोते हुए सेवा नहीं की । जिन्होंने चाहा उन्होंने किया, जिन्होंने नहीं चाहा उन्होंने नहीं किया। जिसे चाहा उसे किया, जिसे नहीं चाहा उसे नहीं किया। घी, तेल, मक्खन, दही, मधु, खांड से वह यज्ञ समाप्ति को हुआ
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यज्ञोपरान्त धनी लोग राजा को उपहार देने आये । राजा के इंकार करने पर उन्होंने यज्ञ शाला के चारों ओर धर्मशालाएँ बनवाई और गरीबों को दान धर्म किया। भगवान ने कुटदन्त को दान यज्ञ; त्रिशरण यज्ञ; शिक्षा प्रद यज्ञ; शोल यज्ञ; समावि यज्ञ और प्रज्ञा यज्ञ के महाफलों के विषय में बताया जिसे सुनकर कुटदन्त भगवान बुद्ध का उपासक बन गया और कहने लगा !! हे गौतम ! यह मैं सात सौ बैलों; सात सौ बछड़ों; सात सौ बकरों; सात सौ मेड़ों को छुड़वा देता हूँ, जीवन दान देता हूँ, वह हरी घास चरे; ठंडा पानी पीनें; ठंडी हवा उनके लिए चले ।" १
१. दीघनिकाय - हिन्दी अनुवाद राहुल सांकृत्यायन जगदीश कश्यप
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