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( ७० ) स्पष्ट है बुद्ध की दृष्टि में लोगों को समाजोपयोगी कार्यों में लगाना, प्रजा को खुशहाल रखना, पशुओं को जोवन दान देना ही सच्चा यज्ञ था। बौद्ध ग्रन्थों में जीव-हिंसा निषेध :___ भगवान बुद्ध द्वारा बौद्ध ग्रहस्थों और भिक्षुओं के लिये पंचशील के नाम से जो पाँच आज्ञाएँ दी गई हैं उनमें पहली आज्ञा है- “कोई किसी जीव को न मारे ।" विनय पिटक के पाचित्तिय भाग में जो ९२वें दोष बताये गये हैं उनमें प्राणि हिंसा के ६१वें और ६२वें दोष में कहा गया है---
जो कोई भिक्षु जानकर प्राणी के जीव को मारे उसे पाचित्रीय है ..
जो कोई भिक्षु जानकर प्राणी युक्त जल को पीये उसे पाचित्तीय है।१ संयुक्त निकाय में ब्राह्मण संयुक्त के अहिंसक सुत्त में वर्णन मिलता है जब भगवान श्रावस्ती में थे अहिंसक भारद्वाज ब्राह्मण आकर उनसे कहता है--
हे गौतम मैं अहिंसक हूँ तब भगवान कहते हैं"जैसा नाम है वैसा ही होवो, तुम सच में अहिंसक ही होवों जो शरीर से वचन से और मन से हिंसा नहीं करता
वही सच में अहिंसक होता है जो पराये को कभी नहीं सताता"२ कोसल संयुक्तके मल्लिका सुत्तमें भगवान कहते हैं-"सभी दिशाओं में अपने मन को दौड़ा, कहीं भी अपने से प्यारा दूसरा कोई नहीं मिला, वैसे हो दूसरों को भी अपना बड़ा प्यारा है इसलिये अपनी भलाई चाहने वाला दूसरों को मत सतावे ।"३
"सर्व प्राणी सुख को चाहने वाले हैं, इनका जो दंड (मन, वचन, काया) से घात करता है वह अगले जनम में इष्ट सुख को नहीं पाता है। सर्व प्राणी १ विनयपिटक-हिन्दी अनुवाद राहुल सांकृत्यायन जगदीश कश्यप २. संयुक्त निकाय- हिन्दी अनुवाद जगदीश कश्यप, धर्म रक्षित भाग १ ३ वही
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