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________________ जाता है तो उस निर्दोष बकरे को क्रूरता पूर्वक मारना क्या उचित है ? क्या ऐसी मानताओं के बाद सब जीवित ही रहते हैं ? यदि रोगी का आयुष्य शेष होगा तो मानता नहीं रखते हुए भी उसका मरण नहीं होगा और यदि उसका आयुष्य पूर्ण हो गया है तो सैंकड़ों मानताओं के बावजूद भी वह बचेगा नहीं। कई लोग पुत्र प्राप्ति के लिये भी देवी से बकरे के बदले पुत्र मांगने की बेहूदा मानता करते हैं । यह तो हुई बात हुई कि "माता पासे बेटा माँगे कर बकरे का साटा। अपना पूत खिलावन चाहे पूत और का काटा"। अब विचारिये कि बकरे के बदले में बेटा मांगना, दूसरे के पुत्र को काटकर अपने पुत्र को स्वस्थ रखना ऐसी अनीति-अन्याय दुनियाँ में और क्या हो सकता है। आज भी भारत में काली पूजा एवं नवरात्रि के दिनों में देवियों के नाम पर इतनी हिंसा होती है कि मानों रूधिर की नदी बह रही हो। कैसी विडम्. बना है कि जौ नौ दिन पवित्र माने गये हैं उन्हीं दिनों में धर्म के नाम पर लाखों जीवों का संहार किया जाता है । इसी प्रकार विजया दशमी के दिन महिषासुर वध का अनुकरण करते हुए भाले और तलवार से भैंसों को थोड़ाथोड़ा काटकर अत्यन्त निष्ठुरतापूर्वक हत्या करते हैं । और ऐसे माँस-भक्षण को उचित ठहराते हुए उसे माता के प्रसाद का नाम देते हैं । ___ जरा विचारिये कि क्या माता इस प्रकार के प्रसाद को चाहती है? क्या उसका भक्षण करती है ? देवी-देवताओं की तो ऐसी प्रवृत्ति होती ही नहीं। उनके इस तर्क में तो इस दृष्टि से भी कोई सार नहीं कि यदि प्रसाद ही है तो फिर खाने वाले को उसका कोई दुष्परिणाम नहीं होना चाहिये, उन्हें प्रसाद का ही फल मिलना चाहिये, परन्तु ऐसा होता नहीं। प्रहलाद ने अपनी भक्ति के बल से विष का अमृत रूप में पान किया उसके शरीर में विष का थोड़ा भी प्रभाव नहीं पड़ा। यही बात कृष्ण उपासिका मीरा पर भी लागू होती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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