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________________ ( ३३ ) यहाँ यह प्रसंग उल्लेखनीय है कि एक राजा हमेशा किसी ब्राह्मण से उपदेश सुना करता था । एक दिन किसी कारणवश जाने में असमर्थ ब्राह्मण ने अपने पुत्र को राजा के पास भेजा । पुत्र बड़ा निपुण था उसने उपदेश देते हुए प्रसंगवश कहा तिल भर मछली खाय के कोटि गौ दे दान | काशी करवट ले मरे तो भी नरक निदान ॥ अर्थात् थोड़ी-सी मछली खाकर चाहे कोई करोड़ों गायों का दान करे और काशी जाकर करवट ले मरे तब भी वह नरक में ही जायेगा । मत्स्यभक्षी राजा को यह बात भला कैसे अच्छी लग सकती थी ? अगले दिन पंडित के पर राजा ने क्रोधित हो पूर्व की घटना बताते हुए कहा कि क्या ऐसे देश सुनने के लिये ही आपको बुलाया है ? अब देखिये पंडित अपना स्वार्थ साधने के लिये क्या अर्थ बताते हैं -- महाराज ! लड़के ने आपको पूर्ण सत्य कहा कि तिल भर यानि थोड़ी-सी मछली खाकर तो नरक में जाये, यदि ज्यादा खाये तो कोई हर्ज नहीं । यानि नरक में जाने का विधान तो थोड़ी मछली खाने वालों के लिये है, ज्यादा खाने वालों के लिये नहीं । पंडित जी ने अपने स्वार्थ के लिये अर्थ का कैसा अनर्थ किया। अपने स्वार्थ के लिये शास्त्र, नोति और धर्म को ताक में रखने वालों को उपदेशक कहना कहाँ का न्याय है ? पशु बलि देकर देवी की मानता मानना कहाँ तक उचित बहुधा अज्ञानी लोग अपनो कार्य सिद्धि के लिये देवी के समक्ष प्रार्थना करते हैं कि मेरा अमुक कार्य हो जाने पर देवी को एक बकरा भेंट करूँगा । भला बताइये, ऐसी कौन-सी जननी होगी जो अपनी संतति रूप जीवधारियों के रक्त और माँस से आनन्दित होगी । मान लीजिये पुत्र की रूग्णावस्था पर एक पिता देवी से प्रार्थना करे कि पुत्र के निरोग हो जाने पर एक बकरा देवी को उपहार स्वरूप दूँगा । अब यदि आयुष्य प्रबलता के कारण पुत्र स्वस्थ हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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