________________
इसीलिये लाइलाज बताकर उस मरीज को मना कर दिया था। डॉ. साहब द्वारा पुलिस अधिकारियों से उस मांस बेचने वाले को जाँच कराने पर पता चला कि वह माँस बेचने वाला मनुष्य का मांस ही बेचता था। मनुष्य का मांस था इसलिये इतनी जाँच हुई यदि पशु माँस होता तो किसी को पीड़ा न होती।
अत: जो व्यक्ति मनुष्य माँस और पशु माँस में अंतर नहीं मानता उसके समान कोई धर्मी नहीं इसके विपरित जो दोनों में भेद मानकर माँस खाते हैं उनके समान कोई पापी नहीं। _ विधि सहित यज्ञ में वध किये पशु का माँस खाने में दोष नहीं मानने वालों को भागवत के इस दृष्टांत पर ध्यान देना चाहिये -प्राचीन बहर्षि राजा ने नारदजी से पूछा कि मेरा मन स्थिर क्यों नहीं रहता हैं ? तब नारद जी ने योगबल से देखकर कहा कि आपने जो प्राणियों के वध वाले बहुत से यज्ञ किये हैं इसी से आपका चित्त स्थिर नहीं रहता है। ऐसा कहकर योगबल से राजा को यज्ञ में मारे हुए पशुओं दृश्य आकाश में दिखलाया और नारद जी ने कहा कि हे राजन ! दया रहित होकर हजारों पशुओं को तुमने जो यज्ञ में मारा है वे पशु इस समय क्रुद होकर यह रास्ता देख रहे हैं कि राजा मरकर कब आये और हम लोग उसको अस्रों से काटकर कब अपना बदला चकावे ।१
इसके बाद प्राचीन बहर्षि राजा भयभीत होकर नारद के चरणों में गिर पड़ा और कहने लगा कि हे भगवान ! अब मैं हिंसा नहीं करूंगा किन्तु मेरा .१. भो-भो प्रजापते राजन्पशन्पश्य त्वयाध्वरे ।
संज्ञापिताजीवमघ्डान्निधुणेन सहस्त्रशः ॥ ७ ।। एते त्वां संप्रतीक्षन्ते स्मरन्तो वैशसं तव । संपरेतमय: कूटैश्छिन्दन्त्युत्थितमन्यवः ।। ८ ।। श्रीमद् भागवत स्कन्ध ४, अध्याय २५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org