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________________ ( २० ) उद्दार कीजिये तब नारदजी ने ईश्वर-भजन आदि कृत्यों को बतलाकर उसका उद्दार किया। हिन्दू धर्म-शास्रों पर दृष्टिपात करने से भी यही प्रतीत होता है कि पूज्य पुरुषों द्वारा देवी-पूजा के समय पशु-वध का कहीं उल्लेख नहीं है कृष्ण ने गोलोकस्थ रास-मण्डल में भगवती दुर्गा की पूजा की। मधुकेटभ युद्ध में विष्णू ने पूजा की । महाघोर तप त्रिपुर काल में महादेव जी ने पूजा की। वृत्रासुर के वध-काल में प्राण-संकट के समय इन्द्र और देवगणों ने पूजा की। परन्तु देवी की इन सब पूजाओं के समय किसी ने भी पशु-वध नहीं किया । इतना ही क्यों, रावण के वध के समय भी रामचन्द्रजी ने देवी पूजा की थी लेकिन इन स्थानों पर भी पशु-वध का कहीं भी जिक्र नहीं है । महात्माओं ने जिस कृत्य को अधर्म समझ कर नहीं किया, यदि मनुष्य उसे अपने स्वार्थ के लिये धर्म समझ कर करे तो यह उसके लिये निन्दनीय ही है। यह तो निश्चित है कि सकाम अथवा निष्काम किसी भी प्रकार से देवी-देवताओं की पूजा में पशु वध करना अनुचित है, अधर्म है। . ____ उपनिषदों के समय यज्ञ-विरोधी आन्दोलन शुरू हुए। उपनिषदों ने आचार पर बल देते हुए ज्ञान मार्ग की श्रेष्ठता का प्रतिपादन करके यज्ञों का घोर विरोध किया। छान्दोग्य उपनिषद में देवकी पुत्र कृष्ण को घोर अंगिरस यज्ञ की एक सरल रीति बताई जिसकी दक्षिणा थी-तपश्चर्या, दान अहिंसा एवं सत्य । उपनिषदों ने तो यज्ञों को संसार सागर से पार होने के लिये फूटी नाव की तरह बताया। रामायण के समय तक यज्ञों की काफी महत्ता थी। महाभारत के समय में भी वे सर्वथा लुप्त नहीं हुए थे फिर भी विचारकों ने यह स्पष्ट रूप से कहना प्रारम्भ कर दिया था कि उन क्रूरतापूर्ण यज्ञों को करने से क्या लाभ जो स्वर्ग के स्वप्न मात्र की भाँति हैं। सच्चा यज्ञ तो अहिंसा, संयम, क्रोध का त्याग है इनकी साधना करने से वह फल प्राप्त होता है जो हजारों यज्ञों से भी नहीं होता। कहने का तात्पर्य है कि महाभारत काल में मुक्ति पाने के लिये पशु-यज्ञ के स्थान पर आत्म-यज्ञ पर बल दिया गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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