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________________ किया । जब भेड़ी बलि दी गयी तो यज्ञ का तत्व उसमें से भी निकल गया और उसने बकरे में प्रवेश किया । तब उन्होंने बकरे को बलि दिया। जब बकरा बलि दिया तो यज्ञ का तत्व उसमें से भी निकल गया और तब उसने पृथ्वी में प्रवेश किया, तब उन्होंने उसे खोजने के लिये पृथ्वी को खोदा तो उसे चावल और यव के रूप में पाया । इसीलिये अब भी लोग इन दोनों को खोदकर पाते हैं जो मनुष्य इस कथा को जानता है उसको (चावल आदि का) हण्य देने से उतना ही फल होता जितना कि इन पशुओं के बलि करने से।"१ यद्यपि देवताओं द्वारा उपरोक्त पशु अमेध्य सूचि में आ गये थे फिर भी यदि किसी ऋषि ने परिस्थितिवश मांश खाने की अनुज्ञा दी तो भावी पीढ़ी ने तत्कालीन परिस्थिति को समझने की कोशिश न करते हुए यही तर्क उपस्थित किया कि फला ऋषि ने माँस खाने की छूट दी है । जब अगस्त्य ऋषि ने नर्मदा और विन्ध्याचल को लाँघकर वैदिक धर्म के प्राचारार्थ दक्षिणापथ में प्रवेश किया और धर्म का प्रचार शुरू किया तब उनके समक्ष अनेक कठिनाइयाँ आई क्योंकि वहाँ के मनुष्य जंगली और मांसाहारी थे, अतः भोजन की समस्या पैदा हुई । अब यदि अकेले अगस्त्य का स्वयं का ही प्रश्न होता तो वे कन्द, फल आदि खाकर भी रह सकते थे किन्तु उनके आदमियों से इस प्रकार रहना कठिन था मजबूरन उन्होंने यज्ञ में पशु वध कर उसके माँस से नौकरों का पेट भरने की व्यवस्था की । अब देखिये अगस्त्य ने तो परिस्थितिवश ऐसा किया लेकिन मनु ने इसका क्या अर्थ लिया___"ब्राह्मणों को यज्ञ के लिये और स्त्री, सेवक आदि के पालन के लिये शास्रोक्त मृगपक्षी मारने चाहिये क्योंकि पहिले अगस्त्यजी ने ऐसा ही किया था।"२ १. शतपथ ब्राह्मण -- अध्याय ८, पृ० १७८ २. यज्ञार्थ ब्राह्मणैर्वध्याः प्रशस्ता मृगपक्षिणः। भृत्यानां चैव वृत्त्यर्थमगस्त्यो ह्याचरत्पुरा ।। मनुस्मृति अध्याय ५. श्लोक २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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