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________________ के जेतमन बिहार में अपने शिष्यों सहित विराजमान थे तब कौशल देश के कुछ ब्राह्मण उनसे प्राचीन काल के ब्राह्मणों के आचार-विचार के बारे में पूछते हैं प्रत्युत्तर में भगवान कहते हैं कि वे ब्राह्मण यज्ञ क्रिया तो करते थे लेकिन उस यज्ञ में कभी गौ नहीं मारी जाती थी। क्षत्रियों को अति वैभवसम्पन्न देखकर ब्राह्मणों की प्रकृति बदली तो उन्होंने वेद मंत्रों की रचना करके महाराजा इक्ष्वाकु के पास जाकर उन्हें यज्ञ करने का परामर्श दिया । राजा ने अश्वमेघ, पुरुषमेघ, वाजपेय आदि यज्ञ किये और नाना प्रकार की दक्षिणा ब्राह्मणों को दी। अब ब्राह्मणों की तृष्णा और भी बढ़ी उन्होंने और बहुत से वेद-मंत्रों की रचना करके राजा के पास जाकर सब वस्तुओं को उपयोगी सम्पत्ति के साथ-साथ गाय को भी उपयोगी सम्पत्ति बताकर यज्ञ में गौ हनन के लिये कहा। कहा गया है लोभ पाप का मूल है. लोभ मिटावत मान । लोभ कबहूँ नहीं कीजिये.जा में नरक निदान । ब्राह्मणों की भी जब लोभ-वृत्ति जागी तो धर्म अधर्म का ख्याल न करके राजा को कैसा परामर्श दिया। महात्मा बुद्ध कहते हैं- "इस प्रकार ब्राह्मणों से प्रेरित होकर महाराज इक्ष्वाकु ने कई लाख गौवों का यज्ञ में घात किया। जो गौ भेड़ के समान नम्र होती है. अपने पैर, सींग या अन्य किसी अंग से दूसरे को दुःख नहीं देती, वरन् दूध के घड़े भर देती है, ऐसी परम् उपयोगी सीधी-सादी गौवों को, ब्राह्मणों के कहने के अनुसार राजा ने सींग पकड़पकड़ कर शस्रों से हनन किया। इस हृदय-विदारक लोमहर्षण दुष्कृत्य को देखकर देवता. पितर, इन्द्र, असुर, राक्षस सब चिल्ला उठे और कहने लगे कि "बढ़ा अनर्थ हो रहा है, जो ऐसे परम उपयोगी पशुओं पर शस्र चलाया जा रहा है।" इस दुष्कृत्य से पहले इस संसार में तीन ही रोग थे अर्थात्, इच्छा, भूख और वृद्धावस्था । परन्तु गौवों का हनन होने से अट्ठानवे प्रकार के रोग हो गये हैं। यह अट्ठानवे प्रकार के रोग रूप दंड का देने वाला गौ-हिंसा युक्त पाप-यज्ञ महाराज इक्ष्वाकु के समय का पुराना है, जिसमें निरपराधी गौ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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