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( १३० ) कुक्कुटी का विशेषण है । विशेषण को हटाकर भी संस्कृत में प्रयोग हुआ करते हैं । सुश्रुत संहिता में मातुलुग का गुण इस प्रकार बताया गया है
_ “मातुलुग हल्का है, खट्टा है, दीपन है, हृदय लिये हितकारी है। उसका छिलका कड़ा, दुर्जर तथा वायु-कृमि-कफ नाशक है। उसका मांस (गूदा) मधुर शीतल, गुरुस्निग्ध है । वायु और पित्त को जीतने वाला है । मेधाजनक है, शूल, वायु, छदि, कफ और अरुचिनाशक है। उसका केसर दीपन है, हल्का, ग्राही है, गुल्म बवासीर नाशक है। शूल अजोण विबंध मंदाग्नि तथा कफ वायु के रोगों में और विशेषकर अरुचि में इसका रस लेना श्रेष्ठ कहा है और कच्चा बिजौरा जिसका जीरा खिला न हो, पित्त वात कर्ता तथा पित्तल है ।"१
कुक्कुट नाम सुनिषण्ण क नामक वनस्पति के नामों में भी परिणित है। उसके गुण बताते हुए भाव प्रकाश में लिखा है- “सुनिषण्णक ठण्डा, दस्त रोकने वाला, मोह तथा त्रिदोष का नाशक, दाह को शांत करने वाला, हल्का, स्वादिष्ट, कषाय रस वाला, रुक्ष अग्नि को बढ़ाने वाला, बलकारक, रुचिकारक और ज्वर श्वास, प्रमेह, कुष्ठ और भ्रम का नाशक है।" ___इस विषय में अन्य निघण्टुकार लिखते हैं- “सुनिषण्णक हल्का, दस्त बन्द करने वाला, बलकारक, अग्नि बढ़ाने वाला, त्रिदोष का नाश करने वाला, बुद्धि प्रद, रुचिदायक, दाह ज्वर को हटाने वाला और रसायन होता है।" भगवती सूत्र के टीकाकार ने अपनी टीका में बीजोरापाक से ही अर्थ लिया है।"२
ऊपर वर्णित कवोय, मज्जार कडए. कुक्कुड मंसए शब्दों का अर्थ स्पष्ट हो जाने पर स्वीकार करना ही पड़ेगा कि भगवान महावीर ने रेवती के घर से जो खाद्य पदार्थ मँगवाया था वह उनकी बीमारी को शान्त करने १. सुश्रुत संहिता सूत्र स्थान, अध्याय ४६; श्लोक ११-१४ पृ. ४२९ २. भगवती सूत्र शतक १५, पृष्ठ ३९३
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