SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२९ ) होती है और रेवती उस समय ऐसी बीमार नहीं थी कि कड़वी औषधि डालकर पाक बनाये । जबकि अगस्त्य की फली मधुर होती है अत: उसका मावा निकाल कर उसके उपादान से खाद्य बनाने की सम्भावना ही जान पड़ती है। अगस्त्य के तथा अगस्ति की शिम्बा के गुणों के बारे में “मदनपाल निघण्टु" में कहा गया है - 1 अगस्त्य बंगसेन, मधु शिग्रु, मुनिद्रम इन नामों से पहिचाना जाता है | अगस्त्य पित्त और कफ को जीतने वाला है, चातुर्थिक ज्वर को दूर करता है और शीत वीर्य है । इसका स्वरस प्रतिश्याय श्लेष्म पित्त राज्यान्ध्य नाशक है ।" शालिग्राम निघण्टु में भी ऐसा ही वर्णन किया गया “अगस्ति की शिवा सारक कही है, बुद्धि देने वाली, भोजन की रुचि उत्पन्न करने वाली; हल्की, पाक काल में मधुर, तीखी, याद शक्ति बढ़ाने वाली, त्रिदोष को नाश करने वाली, शूल रोग, कफ रोग को हटाने वाली, पाण्डु रोग को दूर करने. वाली, विष को नष्ट करने वाली श्लेष्म गुल्म को हटाने वाली होती है,.. परन्तु पकी हुई शिम्बा रुक्ष और पित्त प्रद होती है ।" भगवती सूत्र में भी स्पष्ट वर्णन मिलता है कि मज्जार शब्द वनस्पतिः वाचक अर्थ में प्रयुक्त होता था । इस सूत्र के टीकाकार ने मार्जारकृत को वायुशमवतार बताया है । १. कुक्कुडमं सए : कुक्कुड का संस्कृत रूप कुक्कुट है । यह शब्द सामान्यतः मुर्गा के अर्थ में ही प्रसिद्ध है । लेकिन कोशों तथा निघण्टुओं में इसके अन्य अर्थ भी मिलते हैं । यथा-वैद्यक शब्द सिंधु में मधुकुक्कुटी शब्द आता है । वहाँ इसका अर्थ मातुलिंग और बिजौरा दिया है। मधुकुक्कुटी का यह अर्थ शब्दार्थ : चिन्तामणि कोष (भाग ३, पृ. ५०६ ) में भी मिलता है । संस्कृत शब्दार्थकौस्तुभ पृष्ठ ६३७ में इसका अर्थ नींबू का पेड़ विशेष दिया है। मधु शब्द १. भगवती सूत्र सटीक शतक १५, पृ. ३९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy