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________________ ( १३१ ) वाला इन्हीं मार्जार तथा कुक्कुट वनस्पतियों से बना हुआ वानस्पतिक माँस (गूदा ) था । अतः भगवती सूत्र के इस पाठ का अर्थ यह हुआ - "हे सींह ! तुम मेढिय ग्राम में रेवती गृह पत्नी के घर जाओ, उसने मेरे लिये दो कुम्हड़े का पाक तैयार किया है मुझे उसको आवश्यकता नहीं है । उसने अपने लिये बिजौरे का पाक तैयार किया है उसे ले आओ मुझे उसकी आवश्यकता है। यदि उक्त विद्वानों में समन्वयकारक बुद्धि होती और सभी पहलुओं से विचार किया होता तो वे ऐसी हास्यास्पद भूल कभी न करते । भगवती शतक उद्द ेश, २, सूत्र ८९ में निर्ग्रन्थ साधू को 'मडादि' खाने वाला कहा है जिसका तात्पर्य है कि निर्ग्रन्थ साधू किसी भी सजीव को नहीं खाते । अग्नि अथवा अन्य किसी प्रकार से खाद्य अथवा पेय पदार्थ निर्जीव होने के पश्चात् हो जैन श्रमण उन्हें ग्रहण करते हैं और इस अपेक्षा से उन्हें 'डादि भक्षक' कहा गया है । जबकि ' मडादि भक्षक' का शाब्दिक अर्थ होता है 'मृत को खाने वाला ।' अब यदि इन विद्वानों की दृष्टि भगवती सूत्र के इस पाठ पर जाती तो वे जैन श्रमणों को 'मुर्दा खाने वाला ' बताने में भी संकोच न करते । भ्रमात्मक शब्दों का स्पष्टीकरण बहुत आवश्यक होता है अन्यथा भावी पीढ़ी भी भ्रमित हो जाती है । इस सन्दर्भ में आज के एक शब्द को लेकर कालान्तर में जो भ्रम पैदा होगा उसका स्पष्टीकरण में आज ही कर देना चाहूँगी पंजाब में पनीर की छोटी-छोटी, गोल-गोल एक प्रकार की मिठाई होती है जिसे मुर्की छैना के नाम से जाना जाता है। अब आज से कई सौ वर्षों पश्चात् लोगों को यह भ्रम होना स्वाभाविक है कि अमुक समय में पंजाब में मुर्की का छैना (बच्चों ) खाया जाता था। मुर्की शब्द का अर्थ कान की बाली से लिया जाता है लेकिन भावी पीढ़ी को सही अर्थ ज्ञात न होने पर वह तो इसका अर्थ किसी प्राणी के बच्चे से ही लगायेगी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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