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________________ ( १२१ ) कहलाता था। चरकसंहिता में फलों के गूदे को मांस कहा गया है-“खजूर का गूदा और नारियल की गिरी।"१ "प्रज्ञापना सूत्र में “मंस" शब्द का अर्थ “गूदे" से लिया गया है ।२। बृहदारण्यक उपनिषद ने तो वनस्पति को पुरुष का रूप देकर उसके प्रत्येक अवयव का वर्णन इस प्रकार किया है- “जसा वनस्पति वृक्ष होता है सचमुच पुरुष भी वैसा ही होता है। वनस्पति पुरुष के पत्र उसके रोम हैं, पुरुष के शरीर में जो त्वचा है उसको समता में वृक्ष के बाहरी भाग में छाल है । छाल के उखड़ने से इसमें से जो रस स्त्राव होता है वह वनस्पति पुरुष का रुधिर है। जिस प्रकार वृक्ष पर प्रहार देने से रस स्त्राव होता है वैसे हो इसके प्ररोह में से रस स्त्रवता है। इसमें रहे हुए सारभाग के टुकड़े इसका माँस है और इसमें से निकला हुआ ठोस स्त्राव जो किनाट कहलाता है इसका मेदो धातु है । वनस्पति के अन्दर की लकड़ियां इसकी अस्थियां हैं और इसके बीजों तथा लकड़ी में से निकलने वाला स्नेह इसकी मज्जा है। यह वृक्ष रूपी धनद पुरुष मूल से नया-नया उत्पन्न होता है ।"३ आप्टेज संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी मांस शब्द का अर्थ "दफ्लेशी पार्ट ऑफ ए फट दिया गया है।४ स्पष्ट है कि प्राणधारियों के शारीरिक अवयव जिन नामों से पहिचाने जाते थे उन्हीं नामों से वनस्पतियों के भिन्न-भिन्न अवयवों का व्यवहार होता था। १. खजूर मांसान्यथा नारिकेलम । २. विंट स मंस कडाहं एयाई हवन्ति एग जीवस्य। ३. बृहदारण्यक उपनिषद अध्याय ३, बा. ९, मंत्र २८ (ईशादि दशोपनिषद भाष्यं निर्णय सागर) पृ. २०२ ४. आप्टेज संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी भाग २, पृष्ठ १२५५ । ऐसा ही अर्थ सस्कृत-शब्दार्थ कौस्तुम (चतुर्वेदी द्वारिका प्रसाद शर्मा-सम्पादित) पृ. ६५५ तथा वृहत हिन्दी कोष (ज्ञान मण्डल काशी) पृ. १०२० में भी दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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