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( १२० ) जैसा गुणवान होता है।"१ ‘अस्थि और बीज वाले वृक्षों के बीजों को गोबर का लेप करके बोना चाहिये ।"२ “पके आम में केशर अस्थि, मांस अस्थि, मज्जा पृथक-पृथक दिखाई देते हैं।"
वृक्ष के कठिन भाग को तथा फलों के बीजों को तो अस्थि शब्द से निर्दिष्ट किया ही है किन्तु कहीं-कहीं फल के भीतर के कठिन पर्दे को भो अस्थि नाम से सम्बोधित किया गया है जैसे क्षेमकुतूहल में कहा गया है कि कपास का फल अति उष्ण प्रकृति वाला, कषाय तथा मधुर रस वाला और गुरू होता है। वह वात, कफ को दूर करने वाला तथा रूचिकर होता है। इसमें से अस्थि (भीतर का कठिन परदा) निकाल कर प्रयोग करने से विशेष लाभदायक होता है।" इसी तरह प्रज्ञापना सूत्र एवं जीवाजी वाभि. गम सूत्र में भी एगट्ठिया शब्द का अर्थ बीज से ही लिया गया है। मांस शब्द का विश्लेषण :
"मांस शब्द से भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि प्रारम्भ में यह शब्द किसी भी पदार्थ के गर्भ अर्थात भीतरी सारभाग के अर्थ में प्रयुक्त होता था। जैसे प्राणधारियों के रुधिर से बनने वाला ठोस पदार्थ मांस कहलाता है। उसी भांति वनस्पतियों में मिलने वाला सारभाग (गूदा) मांस
कण्टाफलंपटां तु कषायं स्वादशीतलम् । कफपित्तहरं चैव तत्फलास्थ्यपि तगणम् ।। राजवल्लभ निघण्टु श्लोक १७३ । अस्थिबीजानां शकृदालेपः शाखिनां गत्तदाहो गोऽस्थिशकृद्रिः काले दोहदं च।
कौटिल्य अर्थशास्त्र पृ. ११७ ३. चूतफले परिपक्वे केशर माँसास्थि मज्जानः पृथक-पृथक
द्दश्यन्ते। सुश्र ति संहिता अध्याय ३, श्लोक ३२
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