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प्रकाशकीय वक्तव्य
प्रस्तुत पुस्तक कु. नीना जैन द्वारा अपने शोध प्रबन्ध का ही आधार है। मेरे मन में विचार आया कि क्यों न मैं अपने पुस्तकालय का सदुपयोग करू और पी. एच. डी. कराया जाय उसी विचार को मूर्त रूप देने को कु. मीमा जैन को साहित किया जिसका प्रतिफल यह ग्रन्थ है ।
इस पुस्तक की विषय वस्तु आज से करीब 500 वर्ष पुराने भारत के इतिहास को प्रकट करती है । उस समय के महान मुगल शासक अकबर के साथ जैन साधुओं द्वारा जैन धर्म और अहिंसा का विचार उनके मन में बैठाया, उसी को दर्शाया गया है |
वर्तमान समय में इस पुस्तक की उपयोगिता और भी बढ़ जाती हैं । पुस्तक से पाठकों को विदित होगा कि आज जिन्हें हम बहुत कट्टर और धर्मान्ध कहते हैं। उनसे जैन साधुओं ने अहिंसा धर्म के पालन में क्या कुछ कराया ।
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पुस्तक के प्रकाशन में जिम्होंने आर्थिक सहायता दी है। उनका मैं बहुत आभारी हूँ | छपाई में प्रभात प्रिंटिंग प्रेस के मालिक श्री श्रीचन्द राजपाल का पूर्ण सहयोग रहा उनको भी धन्यवाद देता हूँ ।
शिवपुरी,
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श्री काशीनाथ सरक
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