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________________ ( 36 ) (इस विवाह का जिक्र पिछले पृष्ठों में हो चुका है) हिन्दू लड़की के साथ यह उसका पहला विवाह था इसके बाद अन्य राजपूत राजकन्याओं से भी अंकबर के विवाह हुए । इन विवाहों से अकबर के शासन और धार्मिक नीति में परिवर्तन हुआ। धर्म, जाति और वंश के भेद-भाव को मिटाकर समस्त जातियों के बीच कटुता को दूर करने की नीति यहीं से प्रारम्भ होती है। राजपूतों और मुगलों के पारम्परिक संघर्ष का अन्त होने ही लगा था पर अकबर भी हिन्दू रामियों के प्रभाव से हिन्दू धर्म की ओर आकृष्ट हुआ उसने अपनी रामियों को धार्मिक संस्कारों, विधियों और पूजा-पाठ करने की स्वतन्त्रता दे दी। 2. आध्यात्मिक चेतना का उदय -- सन् 1562 में ही यानि जब अकबर 20 बर्ष का हआ तब प्रजा की असली हालत जानने के लिए उसने फकीरों और साधू सन्तों का सहवास करना शुरू किया यह ठीक भी है कि निष्पक्ष, त्यागी, फकीरों और सोधओं के जरिये प्रजा की असली हालत अच्छी तरह से मालुम हो सकती हैं। साधुओं से मिलकर जैसे वह प्रजा की असली हालत जानने की कोशिश करता था वैसे ही वह आत्मा की उन्नति के साधनों को भी अन्वेषण करता । अकबर ने कहा कि “जब मैं बीस वर्ष का हुआ तब मेरे अन्तःकरण में उग्र शोक का अनुभव हुआ । और मुझे इस बात का बड़ा दुख हुआ कि मैंने परलोक यात्रा के लिए धार्मिक जीवन नहीं बिताया।" बस यहीं स उसकी उदार धार्मिक नीति का शुभारम्भ होता है। इस तरह बीस वर्ष की आयु पूरी करने पर, यह सोचकर कि परलोक यात्रा के लिए धार्मिक जीवन नहीं बिताया उसे अत्यधिक दुख हुआ। इसी समय उसे एक और अध्यात्मिक अनुभव हुआ। वह कहता है कि "एक रात मेरा हृदय जिन्दगी के बोझें से चिन्तित हुआ तब अचानक सोते जागते अर्थात् ऊध-नींद में मुझे एक विचित्र दृश्य दिखाई दिया जिससे मेरी आत्मा को थोड़ा सा सुख मिला। :: RL... 1. On the Completion of my tweneieth year. I experienced and internal bitherness and from the lack of spritual provision for my last Journey, my soul was seized with exceeding sorrous. आइने अकबरी एच. एस. जैरट द्वारा अनुदित भाग 3 पेज 433 2. "One night my heart was weary of the burden of life wher suddenly between sleeping and waking a strange vision appeard to me, and my sprit was some-what Comfon ted." आइने अकबरी एच. एस. जेरेट द्वारा अनुदित भाग 3 पेज 435 - - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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