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अन्य स्थान पर भी अबुलफजल ने लिखा है कि एक देवी आनन्द अकबर शरीर में व्याप्त हो गया और परमात्मा के साक्षात्कार की अनुमति से किरण कुटी । अकबर का ईश्वर से प्रत्यक्ष सम्पर्क हो गया और उसे एक नवीन आध्यास्मक अनुभव हुआ।
भक्ति आन्दोलन और सूफी विचार धाराओं का अकबर पर प्रभाव
अकबर के विचारों और धार्मिक नीति पर तत्कालीन . भक्ति आन्दोलन, विभिल सन्तों, साधुओं, फकीरों और सूफियों का विचार धाराओं का प्रभाव पड़ा हिन्दू सन्तों, भक्तों, तथा साधुओं और सूफी फकीरों तथा शेखों ने धर्म के बाह्य आडम्बर को ध्यर्थ बताया उन्होंने धार्मिक प्रथाओं और कर्मकाण्ड का खण्डन किया। जीवन और चरिम की पवित्रता तथा ईश्वर की सत्ता पर बल दिया। अकबर की राज सभा में भी सूफी विद्वान थे। जब अकबर सूफी शेख मुबारक और उसके दो प्रभावशाली पुत्र फौजी और - अबुलफजल के सम्पर्क में आया तब कट्टरता और धर्मान्धता से उन्मुक्त संसार उसके सामने आया । वह अपने धार्मिक विचारों में तो उदार या ही साथ ही साथ अन्य धर्मों के धार्मिक विचारों, विश्वासों और रीति-रिवाजों के प्रति भी सहानुभूति रखता था। फैजी स्वतन्त्र विचारों वाला प्रतिभाशाली विद्वान था इसलिए मुगल दरबार में वह धर्मान्ध कट्टर मुल्लाओं का विरोधी था । अग्रुलफजल भी मध्य युग की धर्मान्धता संकीर्णता और साम्प्रदायिकता से ऊंचा उठा हुआ था। जब अकबर की उपस्थिति में इबादतखाने में भिन्न-भिन्न धर्मों की गोष्ठियां और चाद-विवाद होते थे तो अबुलफजल इनमें सक्रिय भाग लेता था। फैजी और अबुलफजल इस्लामी शास्त्रों
अपने उद्दरणों और तुर्कों से धर्मान्ध मुल्लाओं के तथ्यों और कथनों को काट हते थे और बादशाह को पृथ्वी पर खुदा का मायष बताकर मुल्लाओं के हथिबारों को कुठित कर देते थे। सूफी सिद्धान्तों ने अकबर के मस्तिष्क को उदार विचारों से भर दिया वे अकबर को इस्लाम धर्म की संकीर्णता से दूर ले गये और उसको विवश कर दिया कि वह पवित्र वास्तविकता की खोज करें।
अकबर को सत्यान्वेषण की प्रवृत्ति
अकबर धर्मनिष्ठ और चिन्तनशील बादशाह था वह सत्य को खोजने और ने का इच्छुक था । बदायूनी ने लिखा है कि "अपनी पूर्व की सफलता पर यवाद की भावना से या नम्र भावना से यह कई प्रातः कालों तक अकेला ही थेना तथा मनन करता रहता है। प्राचीन इमारत के एक विशाल चौड़े थर पर, जो कि निर्जन स्थान के पास पड़ा हुआ था, उस पर वह अपने सीने
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