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साक्षात् दर्शन वास्तव में इस भावना द्वारा ही हो सकते हैं । बिन्दू अर्थात् सत्यता के वर्णन करने की कोई जरूरत नहीं है जैसे कि यह असम्भव है कि प्रकृति खाली होती है । ईश्वर तो सर्वव्यापी होता है ।" प्रत्येक व्यक्ति के साथ अच्छाई बरतना मेरा कर्तव्य है चाहे वे भगवान को माने या न मानें । यदि नहीं मानते हैं तो वे मूर्ख होते हैं और मेरी दया के पात्र होते हैं।
"That which is without from cannot be seen whether is sleeping or waking, but it is apprehensible by force of imagination. To behold God in vision is, in fact to be understood in the sense."
There is no need to discuss the point that a vacuum itt nature is impossible. God is omnipresent. It is my duty to be in good understandiñg with all men. If they walk in the way of God's will interference with them would be in itself reprehensible and otherwise, they are under the malady of ignorance and deserve my Compassion."
अकबर के हृदय में यह भाव अंकुरित हो गया था कि सभी वर्गों के धर्मों के लोगों की निःस्वार्थ सेवा से बढ़कर ईश्वर को प्रसन्न करने का कोई अन्य मार्ग नहीं है । उसकी दृढ़ धारणा थी कि सच्चा धर्म वही हैं, जिसमें वर्ग, जाति, सम्प्रदाय और रंग रूप का भेद-भाव नहीं हो उसका विश्वास था कि ईमानदारी और सच्चाई से अपने धर्म के सिद्धान्तों पर चलने वाला व्यक्ति किसी भी धर्म का मानने वाला क्यों न हो मुक्ति प्राप्त करता है । इसलिए अपने सैनिक अभियानों और युद्धों के दौरान भी अन्य मुस्लिम आक्रमणकारियों के समान मन्दिरौं और मूर्तियों को तोड़ा फोड़ा नहीं यहाँ तक कि हारे हुए राजाओं के साथ भी उदारता का व्यवहार किया।
___ इस बीच अकबर को दो एक आत्यात्मिक अनुभव हुए जिन्होंने उसे और भी अधिक उदार बना दिया । "मार्च 1578 में एक रात्रि को लाहौर के पास आखेट यात्रा से ध्यान मग्न अवस्था में अपने पड़ाव की ओर भूमि पर गिरा। इसको ईश्वर सन्देश मानकर वह स्वयं भक्ति मैं साष्टांग पड़ गया।" इस महत्व पूर्ण आध्यात्मिक जागति से अकबर धर्म में सहिष्णु और असाम्प्रदायिक हो गया।
1. आइने अकबरी एच. एस. जैरेट द्वारा अनुदित भाम 3 पृष्ठ 425,
26,30, 31.
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