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________________ ( 18 ) इस तरह कुमारपाल की अहिंसक नीति का ही यह परिणाम है कि वर्तमान में सबसे अहिंसक प्रजा गुजरात में ही हैं । जैन धर्म की शिक्षा का राजा पर जो सबसे बड़ा प्रभाव दिखाई देता है वह यह कि उसने निःसंतान मरने वालों की सम्पत्ति पर अधिकार करने का राजनियम वापिस ले लिया कीति कौमुदी में इसका वर्णन मिलता है। कुमारपाल चरित्र संग्रह में भी इसका वर्णन मिलता है कि प्रजा के इस दुख को राजा सहन न कर सके और उन्होंने अपने अधिकारियों से कहा-"निष्पुत्र मनुष्य की मृत्यु के बाद उसकी सम्पत्ति राज्य ले लेता है, यह अत्यन्त दारूण नियम हैं, इससे प्रजा बहुत पीड़ित होती है । इसलिए यह नियम बन्द करो, चाहे भले ही मेरे राज्य की उपज में लाख दो लाख तो क्या किन्तु करोड़ दो करोड़ का ही घाटा क्यों न आ जाये । अधिकारियों ने आज्ञा को मस्तक पर चढ़ाया और उसी क्षण सारे राज्य में इस कायदे की क्रूरता दाब दी गई जिससे प्रजा के हर्ष का पार नहीं रहा। इस तरह राजकोष में प्रतिवर्ष आने वाले करोड़ों रुपयों की परवाह न करके कुमारपाल ने इस प्रथा का निषेध कर दिया। - इस तरह दयूत की बुराईयों के बारे में कुमारपाल ने हेमचन्द्राचार्य से कई कथायें सुनी थीं स्वयं भी इसके कुपरिणाम देखे थे, अतः दयुत के दुष्परिणामों से प्रजा को बचाने के लिए दयूत निषेध की राजाज्ञा निकाली। इस तरह हेमचन्द्राचार्य के प्रतिबोध द्वारा कुमारपाल पर जो प्रभाव पड़ा उसके सार रूप में हम कह सकते हैं कि कुमारपाल की अमारि घोषणा द्वारा यज्ञों में भी पशु बलि देना बन्द हो गया। लोगों की जीव जाति पर दया बढ़ी। मांस भोजन इतना निषिद्ध हो गया कि सारे हिन्दुस्तान में एक या दुसरे प्रकार से थोड़ा बहुत भी मांस हिन्दू कहलाने वाले उपयोग लाते किन्तु गुजरात में उसकी गन्ध भी लग जाये तो उसी समय स्नान करते । ऐसी वृत्ति उस समय से लोगों की बनी हुई आज तक चली आ रही है। प्राय. गुजरात का सम्पूर्ण उच्च और शिष्ट समाज निरामिष भोजी है । गुजरात का प्रधान किसान वर्ग भी मांस त्यागी है। कुमारपाल के काल में गुजरात श्रवेताम्बर जैन धर्म का सबसे बड़ा केन्द्र था । श्रीलक्ष्मी - - 1. "सुकृतकृतर्यस्य मृत वित्तनिमुन्यतः । देवस्येव नदेवस्य युक्ताभूद मृतार्थिता।" कीर्ति कौमुदी समें 2 श्लोक 43 2. कुमारपाल चरित्रसंग्रह-जिनविजय मुनि पृष्ठ 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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