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________________ प्रथम अध्याय मुगल काल में जैन धर्म एवं आचार्य परम्परा :(अ) तपागच्छ के प्रमुख आचार्य : भगवान महावीर स्वामी की पट्ट परम्परा में अनेक गच्छों का जन्म हुआ। ये गच्छ परम्परा जैन धर्म में साधना का एक सोपान थी। मत विभिन्नता के कारण गच्छ परम्परा को अनेक भागों में बांट दिया गया लेकिन प्रमुख परम्परा में दो को ही प्रमुख स्थान मिला: 1-तपागच्छ 2-खरतरगच्छ पागच्छ को उत्पत्ति : संवत 1273 (सन् 1216) से श्री जगच्चन्द्रसूरीश्वर ने बारह वर्ष पर्यन्त बॉविल तप की आराधना की इस तप के प्रताप से पृथ्वी पर कलंक का नाश हुआ हि वह तपा ऐसी ख्याति संसार में प्रकट हुई । इस तरह संवत 1285 सन् 1228) के साल से श्रीजगच्चंद्रसूरि से जगत में तपा गच्छ की प्रसिद्धि मुगलकाल में इस गच्छ में प्रमुख आचार्य विजयदानसूरि, विजयहीरसूरि, सेनसूरि और विजयदेवसूरि हुए। विषयमानसूरि : ये आनन्द विमल सूरिजी के पट्टधर थे इनका जन्म संवत 1553 496) में अहमदाबाद के जामला नामक गांव में हुआ। 9 वर्ष की उम्र ऑबिल जैनियों की एक तपस्या विशेष का नाम है, इस तपस्या के दिन केवल एक ही वक्त नीरस, घी, दूध दही, गुड़ आदि वस्तुओं से रहित भोजन किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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