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पूर्णता और उत्तमता के आधार रूप, सच्चे और ज्ञानी ऐसे सैयद अहमद कादरी के भेजने से बुद्धिशाली और वर्तमान समय के जालीनूस (धन्तन्तरी वैध) एवं आधुनिक ईसा जैसे जोगी के अनुमोदन से वर्तमान समय के परोपकारी राजा सुबहान के दिये हुए परिचय से और सबसे नम्र शिष्यों में से एक तथा नोंध करने धाले इसहाक के लिखने से चन्दू संघवी, पिताबोरू (?) पितामह वजीवन (बरजीवन) आगरे का रहने वाला समजवम (सेवड़ों को मानने वाला) जिसका कपाल चोड़ा, भ्रमर चौड़ी, भेड़िये के जैसे नेत्र, काला रंग मुड़ी हुई दाड़ी मुंह के ऊपर चेचक के बहुत से दाग दोनों कानों में जगह-जगह छेद, मध्यम ऊंचाई और जिसकी करीब 60 वर्ष की उम्र है, उसने बादशाह की ऊंची दृष्टि को एक रत्न से जड़ी हुई अंगूठी 10 वें वर्ष के इलाही महीने की 20 तारीख के दिन भेंट की
और अर्ज की कि अकबरपुर गांव में 10 बीघा जमीन, उसको सहत गुरू विजयसेनसूरि के मन्दिर, बाग, मेला और सम्मान की यादगार के लिए दी जाये। इसलिये सूर्य की किरणों की तरह चमकने वाला और सब दुनियां को मानने योग्य हुक्म हुआ कि चन्दू संघवी को गांव अकबरपुर, परगना चौरासी में जो खम्भात के समीप हैं । दस बीघे जमीन का टुकड़ा "मदद-इ-मुआश" नाम की जागीर स्वरूप दिया जाये । हुक्म के अनुसार जांच करके लिखा गया। माजिन में लिखा है कि "लिखने वाला सच्चा हैं"।
जुमलुतुल्मुल्क, मदारूलमहाम एतमादुद्दौला का हुक्म-"दूसरी बार अर्ज की जाये।"
मुखलीसखान ने जो मेहरबानी करने योग्य है--बादशाह के सामने दूसरी बार अर्ज पेश की (पुनः यह पत्र पेश किया जाता है) तारीख 21 माह यूर, इलाही सम्वत् 10
जुमलुतुल्मल्क, मदारूलमहाम का हुक्म-"खरीफ के प्रारम्भ मौशकाने ईल से हुक्म लिखा जाये ।" जुमलुतुल्मुल्को मदारूल,
अन्तिम हुक्म महामी का हुक्म
जुमलुतुम मदारूल महामका "भारती (वाजिन) बनाई जाये"
यह है कि"मोजा मुहम्मदपुर से इस (चन्दू संघवी) को माफी दी बाय।"
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