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________________ विवेकहर्ष, परमानन्द, महानन्द उदयहर्ष को जहांगीर बादशाह का फरमान [ मम्बर 6] भल्ला हो अकबर (ता0 26 माह फर्वरदीन, सन् 5 के करार मुजीब के फरमान की) तमाम रक्षित राज्यों के बड़े हाकिमों, बड़े दीवानों, दीवानी, के बड़े-बड़े काम करने वालों, राज्य कारोबार का बन्दोबस्त करने वालों, जागीरदारों और करोड़ियों को जानना चाहिये कि दुनिया को जीतने के अभिप्राय के साथ हमारी भ्यायी इच्छा ईश्वर को खुश करने में लगी हुई है और हमारे अभिप्राय को पूरा हेतु तमाम दुनियां को जिसे ईश्वर ने बनाया है-खुश करने की तरह रज हो रहा है। उसमें भी खास करके पवित्र विचार वालों और मोक्ष धर्म वालों को जिनका ध्येय सत्य की शोध और परमेश्वर की प्राप्ति करना है-प्रसन्न करने की ओर हम विशेष ध्यान देते हैं । इसलिए इस समय विवेकहर्ष, परमानन्द, उदयहर्ष, तपा यति (तपागच्छ के साधू) विजयसेनसूरि, विजयवेवसूरि और नन्दिविजयजी, जिनको "खुशफहम" का खिताब है के शिष्य है, हमारे दरबार में थे। उन्होंने दरखास्त और विनती की कि,-"यदि सारे सुरक्षित राज्य में हमारे पवित्र बारह दिन जो भावों के पयूषण के दिन है तक हिसा करने के स्थानों में हिंसा बन्द कराई जायेगी तो इससे हम सम्मानित होंगे, और अनेक जीव आपके उच्च और पवित्र हुक्म से बच जायेंगे इसका उत्तम फल आपको और आपके मुबारकि राज्य को मिलेगा। हमने शाही रहेम-नजर हरेक धर्म तथा जाति के कामों में उत्साह दिलाने बल्कि प्रत्येक प्राणी को सुखी कर दुनिया का माना हुआ और मामने लायक जहांगीरी हुक्म हुआ कि उथल्लखित बारह दिनों में, प्रतिवर्ष हिंसा करमे के स्थानों में, समस्त सुरक्षित राज्य में प्राणी हिसा न करनी चाहिये और म करने की तैयारी ही करनी चाहिये इसके सम्बन्ध में हर साल नया हुक्म नहीं मांगना चाहिये । इस हुक्म के मुताबिक चलना चाहिये । फरमान के विरुद्ध आचरण नहीं करना चाहिये इसको अपना कर्तव्य समझना चाहिए । नप्रतिनम्र, अबुल्खैर के लिखमे से और महम्मदसैयद की मौंध से। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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