________________
अकबर बादशाह का फरमान आचार्ग जिनचन्द्रसूरिजी को
[ नम्बर 5]
सूबे मुलतान के बड़े बड़े हाकिम, जागीरदार, करोडी और सब मुत्सद्दी (कर्मचारी) जान लें कि हमारी यही मानसिक इच्छा है कि सारे मनुष्यों और जीव-जन्तुओं को सुख मिले जिससे सब, लोग अमन चैन में रहकर परमात्मा की आराधना में लगे रहें । इससे पहले शुभचिन्तक तपस्वी जयचन्द्र (जिनचन्द्र) सूरि खरतर (गच्छ) हमारी सेवा में रहता था। जब उसकी भगवदभक्ती प्रकट हुई तब हमने उसको अपनी बड़ी बादशाही की मेहरबानियों में मिला लिया। उसने प्रार्थना की कि इससे पहले हीरविजयसूरि ने सेवा में उपस्थित होने का गौरव प्राप्त किया था और हर साल बारह दिन मांगे थे, जिनमें बादशाही मुल्कों में कोई जीव मारा न जावे और कोई आदमी किसी पक्षी, मछली और उन जैसे जीवों को कष्ट न दें उसकी प्रार्थना स्वीकार हो गई थी। अब मैं भी आशा करता हूं कि एक सप्ताह का और वसा ही हुक्म इस शुभचिन्तक के वास्ते हो जाये । इसलिए हमने अपनी आम दया से हुक्म फरमा दिया कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की नवमी से पूर्णमासी तक साल में कोई जीव मारा न जाये और न कोई आदमी किसी जानवर को सताये। असल बात तो यह है कि जब परमेश्वर ने आदमी के वास्ते भांति-भांति के पदार्थ उपजाये हैं तब वह कभी किसी जानवर को दुख न दे और अपने पेट को पशुओं का मरघट न बनावे । परन्तु कुछ हेतुओं से अगले बुद्धिमानों ने वैसी तजवीज की है इन दिनों आचार्य जिनसिंह उर्फ मानसिंह ने अर्ज कराई कि पहले जो ऊपर लिये अनुसार हुक्म हुआ था वह खो गया है इसलिए हमने उस फर्मान के अनुसार नया फर्मान इनायत किया है । चाहिये कि जैसा लिख दिया गया है वैसा ही इस आज्ञा का पालन किया जाये । इस विषय में बहुत बड़ी कोशिश और ताकीदी समझकर इसके नियमों में उलट फेर न होने दें। तारीख 31 खुरदाद इलाही सन् 491
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org