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रहने वालों में से कोई भी इनको हरकत (कष्ट) न पहुंचावे और इनके मन्दिर तथा उपाश्रयों में भी कोई न उतरे। इसी तरह इनका कोई तिरस्कार भी न करे । यदि उनसे में ( मन्दिरों या उपाश्रयों में से कुछ गिर गया या उजड़ गया हो और उनको मानने, चाहने खैरात करने वाले में से कोई उसे सुधारना या उसकी नींव डालना चाहता हो तो उसे कोई बाह्य ज्ञान वाला ( अज्ञानी) या धर्मान्ध न रोके । और जिस तरह खुदा को नहीं पहिचानने वाले, बारिश रोकने और ऐसे ही दूसरे कामों को करना जिनका करना केवल परमात्मा के हाथ में है - मूर्खना से जादू समझ, उसका अपराध उन बेचारे खुदा को पहचानने वालों पर लगाते हैं और उन्हें अनेक तरह से दुख देते हैं ऐसे काम तुम्हारे साये और बन्दोबस्त में नहीं होने चाहिये, क्योंकि तुम नसीब वाले और होश्यार हो । यह भी सुना गया है कि हाजी अबीबुल्लाह ने जो हमारी सत्य की शोध और ईश्वरीय पहचान के लिए थोड़ी जानकारी रखता है इस जमात को कष्ट पहुचाया है इससे हमारे पवित्र मन को जो दुनियां का बन्दोवस्त करने वाला है - बहुत ही बुरा लगा है इसलिए तुम्हें इस बात की पूरी होश्यारी रखनी चाहिए कि तुम्हारे प्रति में कोई किसी पर जुल्म न कर सके उस तरफ के मोजूदा और भविष्य में होने वाले हाकिम, नबाव या सरकारी छोटा से छोटा काम करने वाले अहलकारों के लिए भी यह नियम है कि व राजा की आज्ञा को ईश्वर की आज्ञा का रूपान्तर समझें. उसे अपनी हालत सुधारने का वसीला समझें और उसके विरुद्ध न चलें, राजाज्ञा के अनुसार चलने ही में दीन और दुनियां का सुख एवं प्रत्यक्ष सम्मान समझें। यह फरमान पढ़ इसकी नकल रख, उनको दे दिया जाये जिससे सदा के लिए उनके पास नद रहे, वे अपनी भक्ती की क्रियायें करने में चिन्तित न हों और ईश्वरोपासना में उत्साह रखे इसको फर्ज समझकर इसके विरुद्ध कुछ न होने देना ।
इलाही सम्बत् 35 अजार महीने की छठी तारीख और खुरदाद नाम के राज यह लिखा गया | मुताबिक तारीख 28 वीं मुहर्रम सन् 999 हिजरी ।
मुरीदों (अनुयायियों) में से नम्रतिनम्र अबुल फजल ने लिखा और इब्राहीम हुसेन ने नोंध की !
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