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________________ होर विजय सूरिजी को अकबर बादशाह का फरमान [ नम्बर 3] महान राज्य के सहायक, महान राज्य के वफादार, श्रेष्ठ स्वभाव और तम गुण वाले, अजित राय को दृढ़ बमाने वाले, राज्य के विश्वास भाजन, शाही पापत्र, बादशाह द्वारा पसन्द किये गये और चे दर्जे के खानों के नमूने स्वरूप सुबारिज्जुदीन" (धर्मवीर) आजमखान ने बादशाही मेहरबानियां और बख्शीशों 'बढ़ती से, श्रेष्ठता का मान प्राप्त कर जामना कि भिन्न-भिन्न रीति-रिवाज ले, भिन्न धर्म वाले, विशेष मतवाले और जुदा पंथ वाले, सभ्य या असभ्य छोटे या टे राजा या रंक, बुद्धिमान या मूर्ख दुनिया के हरेक दर्जे या जाति के लोग, कि नमें का प्रत्येक व्यक्ति खुदाईनूर जहूर में आने का प्रकट होने का स्थान और नया को बनाने वालों के द्वारा निर्मित भाग्य के उदय में आने की असल जगह एवं सृष्टि संचालक (ईश्वर) की आश्चर्य पूर्ण अमानत है-अपने-अपने श्रेष्ठ गं में दृढ़ रहकर, तन और मन का सुख भोगकर, प्रार्थनाओं और नित्य क्रियाओं एवं अपने ध्येय पूर्ण करने में लगे रहकर, श्रेष्ठ बख्शिशें देने वाले (ईश्वर) से ॥ प्रार्थना करे कि वह (ईश्वर) हमें दीर्घायु और उसम काम करने की सुमति । कारण, मनुष्य जाति में से एक को राजा के दर्जे तक ऊंचा चढ़ाने और उसे र की पोशाक पहनाने में पूरी बुद्धिमानी यह है कि वह (राजा) बदि सामान्य और अत्यन्त दया को जो परमेश्वर की सम्पूर्ण दया का प्रकाश है, अपने ' रखकर सबसे मित्रता न कर सके, तो कम से कम सबके साथ सुलह, मेल व डाले और पूज्य व्यक्ति में (परमेश्वर के) सभी बन्दों के साथ मेहरबानी, दि और दया करे तथा ईश्वर की पैदा की हुई सब चीजों (प्राणियों) को जो । परमेश्वर की सृष्टि के फल हैं मदद करने का ख्याल रखें एवं उनके हेतुओं 'फल करने में और उनके रीति-रिवाजों को अमल में लाने के लिए यह करे कि जिससे बलवान गरीब पर जुल्म न कर सके और हरेक मनुष्य और सुखी हो। इससे योगाभ्यास करने वालों में श्रेष्ठ हीरविजयसरि "सेवडा" और उनके बनने वालों की जिन्होंने हमारे दरबार में हाजिर होने की इज्जत पाई है जो हमारे दरबार के सच्चे हितेच्छ हैं योगाभ्यास की सच्चाई, बद्धि और की शोध पर नजर रखकर हुक्म हुआ कि उस शहर के (उस तरफ के) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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