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________________ परिशिष्ट 6 कच्छ मोटी खाखरना देशसरनो शिलालेख व्याकरण काव्य साहित्य नाटक संगीत ज्योतिष बन्दोडलंकार कर्कशते शैव जैन चिन्तामणि प्रचंग खम्मन मीमांसा स्मृति पुराण वेद श्रुति पद्धति षटत्रिंशत्वसहस्त्राधिक 6 लक्षमित श्री जैनागमप्रमुख स्वपर सिद्धान्त गणित जाग्रद्यावनीयादि षडदर्शनी ग्रन्थ विशदेति ज्ञान चातुरी दलितर्वादिजनोन्मादः ब्राहीया. वनीयादि लिपि पिछालिपी विचित्र चित्रकला छटोज्जवाल नावधि विधीयमान विशिष्ट शिष्टचेतश्रचमत्कार कारि श्रृंगारादिरस सरस चित्रादलांकारालंकृत सुरेन्द्र भाषा परिगणि भवरू नष्ट काव्य षटत्रिंशद्रागिणी गणोपनीत परम भाव राममाधुर्य श्रेतृजनामृत पीतगीत रास प्रबन्ध परम भाव रागमाधुर्य श्रतजनामृत पीत गीतरास प्रबन्ध नाना छन्दः प्राच्यमहा पुरूष चरित्र प्रमाण सूत्रवृत्यादि करण यथोक्त समस्या पूरण विविध ग्रंथग्रंथनेन नेक इलोकशत संख्यकरणादि लब्धगीः प्रसादः श्रोतृश्रवणामृत परणानुकारि सर्वराग परिणि मनोहारि मुख नादैः स्पष्टाष्टावधान शतावधान कोष्टकपूरणादि पांडित्यानुरंजित महाराष्ट्र कौंकणेश श्री बुहार्नशाहि महाराज श्री रामराज श्रीखानखाना श्रीनवरंगखान: प्रभृत्यडनेक भूपबत्त जीवामारि प्रभूत बन्दिमोक्षावि सुकृत समजित यशःप्रवादः प. श्री विवेक हर्षगणि प्रसाईरस्मवगुरुपादैः संसघाट कैस्तेषामेव श्री परमगुरूणा मादेश प्रसाद माराज श्री भारमल्लजिदाग्रहानुगा मिनमासाव्य श्री भक्तामरादि स्तुति भक्ति प्रसन्नी भूत श्री ऋषभदेवोपासक सुर विशषज्ञया प्रथम विहारं श्री कच्छदेशंत्रं चक्रे तत्रच सम्वत् 1656 वर्ष श्री भुज नगरे आद्यं यतुर्मासंक द्वितीयच राजपुर बन्दिरे तदाव श्री कच्छा मच्दुकांग परिचम पांचाल वागड जैसला गंडलायनेडक देशाधीशमहाराज श्री खंगार जी पट्टालेकरणकिरण काव्यादि परिझान सरस्वती महानवस्थान विरोध त्याजकर्यादववंश भास्कर महाराज श्रीभारमल्लजी राजाधिराजः (विज्ञप्ता) श्रीगुरूव स्ततस्तदिच्छापूर्वक संजिग्मिवांसः काव्य व्याकरणादि गोष्ठया स्पष्टावधानादि प्रचंड पांडित्य गुण दर्शनेन च रंजितः राजेन्द्रः श्री गुरूणां स्वदेशेषु जीवामारी प्रसादश्रके तद्धयक्तिर्यथा सर्वदापि गवामारिःपर्युषणा ऋषिपञ्चमीयुत नवदिनेषु तथा श्राद्धपक्षे सर्वेकादशी रविवार दर्शषु च तथा महाराज जन्मदिने राज्य दिने सर्व जीवामारिरिति सार्वदिकी सार्वत्रिकी चोटुघोषणा जज्ञे तदनु चैकदा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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