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________________ ( 133 ) बहुत अनुभवी और बुद्धिमान हैं । जो कुछ वे कहेंगे हम सब करेंगे । सम्पूर्ण ' के लिए देखिये परिशिष्ट नं. 7 धर्ममूर्ति और कल्याणसागर - कुनपाल और सोनपाल ओसवाल के दो धनाढ्य जैन भाई जहाँगीर के बार में उच्च पद पर सम्मानित थे। उन्होंने आगरा में एक विशाल मन्दिर वाया जिसमें धर्ममूर्ति और उसके शिष्य कल्याणसागर के द्वारा वंशाख तीज सम्वत् 1671 (सन् 1614 ) को श्रेयांसनाथ और महावीर की प्रतिमायें पित की गई। इससे प्रकट होता है कि धर्ममूर्ति कल्याणसागर मे बादशाह से की । नन्दविजयसूरि वर्ष 1617 ईसवी में आचार्य विजय सेनसूरिजी के शिष्य एवं उत्तराधिकारी चायं विजयतिलकसूरिजी के आदेश 'मुनि नन्दविजय धर्म प्रचारार्थ मांडू गये । दिनों वहां सम्राट जहांगीर का पड़ाव था । सम्राट ने मुनिजी का बहुत मान किया तथा उन्हें मुनि श्री भानुचन्द्रजी का स्मरण हो आया उन्होंने तत्काल न श्री भानुचन्द्रजी को मांडू के लिए मिमन्त्रण भेज दिया । सम्राट अकबर के पक्ष लाहौर में इन्होंने अष्टावधान का प्रदर्शन किया था। सम्राट मुनि की इस द्धता पर बहुत मुग्ध हुआ इस समय मुनि नन्दविजय के साथ आचामं श्रीविजय - सूरि भी थे। विजयतिलकसूरि आचार्य विजयदेवसूरिजी जिनका उल्लेख पूर्व में हो चुका रविजयसूरि की मान्यताओं के विपरीत प्रवचन परीक्षा ग्रन्थ के त नवीन संस्करण सर्वसशतक को जैन धर्म का प्रमाणिक ग्रन्थ र दिया था तथा इस प्रकार वे मुनि हीरविजय तथा उनकी शिष्य परम्परा मुनि जयसेनसूर, मुनि भानुचन्द्रगणि आदि से पृथक हो गये थे, परिणामस्वरूप चार्य हीरविजयसूरिजी के शिष्यों में जिनमें मुनि सोमविजय मुनिनन्दि विजय, निविजयराज मुनिभानुचन्द्र तथा सिद्धिचन्द्र सम्मिलित थे, अहमदाबाद में -1-1617 ईसवी में एकत्रित होकर रामविजय नामक एक विद्वान सन्यासी सम्प्रदाय के आचार्य की पदवी के योग्य घोषित किया तथा मुनि विजयसुन्दर भट्टारक के द्वारा उन्हें विजयतिलकसूरि के नाम से अभिषिक्त करवाकर उन्हें वार्य विजयसेनसूरि का उत्तराधिकारी स्वीकार किया। मुनि सिद्धिचन्द्रजी को स अवसर पर उपाध्याय की पदवी दी गयी । रि 1. विजयप्रशस्ति महाकाव्य सर्ग 12 इलोक 91 Jain Education International For Private & Personal Use Only है, ने आचार्य मुनि धर्मसागर माननो प्रारम्भ www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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