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________________ ( 132 ) उपाध्याय विवेकहर्ष, परमानन्द, महानन्द, उदय हर्ष - उपाध्याय विबेकहर्षजी आचार्य आनन्दविमलसूरि के प्रतापी शिष्यों में से थे । ये अष्टावधान साधते थे । बादशाह जहांगीर से मिलने से पहले इन्होंने अनेक हिन्दू राजाओं और मुगल सूबेदारों को प्रतिबोधित कर जीव-हिंसा बन्द कराने का महत्वपूर्ण कार्य किया । इनका सम्बन्ध कोंकण का राजा बुरहानशाह, महाराज श्री रामराजा, कच्छ का राजा भारमल, खानखाना और नौरंगखान आदि से था कच्छ देश के खाखर में जो शिलालेख है उसे पढ़ने से तो ऐसा प्रतीत होता है कि राजा भारमल तो विवेकहर्ष के प्रभाव से जन ही हो गया था क्योंकि उनका बनवाया हुआ भुज नगर में राजबिहार नाम का ऋषभनाथ जैन मन्दिर है जो सम्वत् 1658 (सन् 1601) में बनाया और सपागच्छ संघ के अधीन कर दिया। जो आज भी कायम हैं । भारमल को प्रतिबोध देकर उनसे अनेक राज्य में जीव. हिंसा निषेध का लिखित रूप में भी प्रचार करवाया जो शिलालेखों के रूप में खाखर के मन्दिर में, जो आज भी विद्यमान है. उसमें वर्णन है कि उनके राज्य में हमेशा के लिए गाय वध का मुमानियम (मनाही) कर दी गई थी। ऋषि पंचमी सहित पर्यषणों के आठ दिनों को मिलाकर नौ दिन श्राद्ध पक्ष, सब एकादशी के दिन, रविवार, अमावस्या के दिनों में, महाराज का जन्म दिन तथा राज्याभिषेक के दिन राज्य में किसी जीव की हिंसा न की जाये । शिलालेख के लिए देखिये परिशिष्ट नं. 6 इस तरह जगह-जगह धर्मोपदेश देते हुए अपने शिष्यों परमानन्द, महानन्द और उदयहर्ष के साथ विवेकहर्ष ब दशाह जहांगीर के दरबार में पहुंचे । और बादशाह से विनती कर 12 दिन वाले फरमान की (जो अकबर ने हीरविजयसूरि जी को दिया था) एक नकल प्राप्त की। जहांगीर के दरबार में अन्य जैन साधू 1. नेमीसागर उपाध्याय जिस समय विजयदेवसूरि मांडू में बादशाह के पास थे, उन्होंने राधनपुर से नेमीसागर जी को बुलाया। सूरिजी की आज्ञानुसार नेमीसागर जी राधनपुर से बिहार कर मांडू आकर बादशाह जहांगीर से मिले। 2. दयाकुशल दयाकुशलजी ने बादशाह जहाँगीर से भेंट की बादशाह उनसे इतना प्रभावित हुआ कि एक अगस्त सन् 1618 को दयाकुशलजी के गुरू विजयदेवमूरि को एक पत्र लिखा- "हमने आपके शिष्य से जो कुछ सीखा उससे हम बहुत प्रसन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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