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भानुचन्द्र जी के कहने से अष्ठोवरी शान्ति स्नान करवाया जिसमें लगभग एक लक्ष्य रुपया व्यय हुआ । इस घटना का विवरण भानुचन्द्र गणिचरित और हीरविजय सूरिरास में मिलता है ।
बादशाह के दरबार में रहकर उपाध्याय श्री भानुचन्द्रजी ने शत्रुन्जय के यात्रियों पर से " जजिया" कर हटवा दिया । "
हीरसौभाग्यकाव्य में इसका वर्णन मिलता है । "
ग्वालियर (गोपाचल ) के किले में जो जैन मूर्तियां आक्रांताओं और दुष्टजनों द्वारा विकृत कर दी गई थी उनका जीर्णोद्धार आपने अकबर को कहकर उसी के राजकोष से करवाया । *
ग्वालियर के किले में जैन मूर्तियों के होने का समर्थन हीरसौभाग्यकाव्य से भी होता है ।" आज भी किले के अन्दर और बाहर हजारों मूर्तियां खण्डितावस्था में पड़ी हैं । किले में वर्ष में एक बार दिगम्बर जैनों का मेला भी लगता है ।
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यद्यपि भानुचन्द्र जी स्त्रयं जैन श्वेताम्बर थे, परन्तु उन्होंने दिगम्बर जैन मूर्तियों के प्रति कोई पक्षपात नहीं प्रदर्शित किया । इससे उनकी उदार प्रवृत्ति का परिचय प्राप्त होता है । श्वेताम्बरों का दिगम्बरों के प्रति इस प्रकार के व्यवहार का यह हमें प्रथम ही उदाहरण प्राप्त हुआ है । भानुचन्द्र श्वेताम्बर जैन एवं तपागच्छ के थे तथा जहांगीर ने उन्हें "तपागच्छ के प्रमुख लिखा है ""
भानुचन्द्रमणिचरित से यह भी ज्ञात होता हैं कि शेख अबुलफजल ने भानुचन्द्र से " षड़दर्शन समुच्चय" पढ़ने की इच्छा प्रकट की थी जिसे स्वीकार करके भानुचन्द्र ने शेख को नियमित रूप से शिक्षा देनी प्रारम्भ कर दी । शेख अबुलफजल पढ़ने समय भानुचन्द्र जी के वचनों को लिपिबद्ध करते जाते थे । आइने अकबरी में जहां अबुलफजल ने भारत में प्रचलित धर्मो का वर्णन किया है वहां जैन श्वेताम्बर धर्म के सम्बन्ध में उसने लिखा हैं कि श्वेताम्बर जैन धर्म
1. भानुचन्द्र गणिचरित भूमिका लेखक अगरचन्द्र भंवरलाल पेज 30-32, हीरविजय सूरिरास पेज 183, श्लोक 38
2. भानुचन्द्र गणिचरित पृष्ठ 25 तृतीय प्रकाश, श्लोक 36-42 3. हीरसोभाग्य काव्य श्लोक 284 सगँ 14
4. भानुचन्द्र गणिचरित चतुर्थ प्रकाश, श्लोक 123-29
5. हरिसौभाग्यकाव्य सगँ 14, श्लोक 251-252
6. द तुजुक ए. जहांगीरी ओर मैमोरीज ऑफ जहांगीर पृष्ठ 7. भानुचन्द्र गणिचरित द्वितीय प्रकाश, श्लोक 58-60
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