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दीवार पर चित्रित स्त्री की आकृति विकार का हेतु होने से साधु को उसे नहीं देखना चाहिये। ऐसा जो निषेध किया गया है उससे भी यह सिद्ध होता है कि 'निर्जीव वस्तुएँ असर करने वाली होती है !
स्थापना निर्जीव होने पर भी उसके प्रभाव को जानने के लिये निम्न दृष्टांत विश्व विख्यात हैं:
१. अपने पति के चित्र को देखकर पतिव्रता स्त्री खूब प्रसन्न होती है। परन्तु उसमें कभी द्वेष की भावना दिखाई नहीं देती है।
२. प्रजावत्सल राजाओं के पुतले देखकर वफादार प्रजा नाराज़ नहीं होकर प्रसन्न ही होती है और इसी कारण ऐसे राजा महाराजाओं के तथा महान पराक्रमी पुरुषों के पुतले उनकी यादगार में बने हुए स्थान २ पर नजर आते हैं।
३. परदेशवासी अपने स्वजन आदि के हस्ताक्षर वाले पक्र को देखकर भी अपने हितैषियों के स्नेह मिलन जैसा संतोष अनुभव करते हैं।
४. अपने ज्येष्ठ तथा इष्टमित्रों की तस्वीर देखकर उनके उपकार और गुणों का स्मरण हो आता है और हृदय प्रेम से पुलकित हो जाता है।
५. कामशास्त्र में स्त्री पुरुषों के विषय सेवन के चौरासी प्रासन आदि देखने से कामीजनों को तुरन्त काम विकार उत्पन्न होता है।
६. योगासन की विचित्राकार स्थापना देखने से योगी पुरुषों की बुद्धि योगाभ्यास में प्रीति को धारण करने वाली होती है।
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