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________________ 5१ लगती है और विनय करने से भक्ति एवं शुभ फल की प्राप्ति होती है । इसी भाँति श्री जिनेश्वरदेव की मूर्ति श्री जिनेश्वर देव की ही स्थापना होने से उसकी आशातना या उसका विनय करने से शुभाशुभ फल की प्राप्ति होती है । श्री जैन शासन में विनय को ही मुख्य गुण माना गया है। उस गुण के पालन के लिए श्री जिनेश्वरदेव की स्थापना स्वरूप मूर्ति की भक्ति आदि करना भी जैन धर्म में मुख्य वस्तु गिनी जाती है । यहाँ तक कि साधुओं के वस्त्र, पात्र, कंबल, रजोहरण और मुहपत्ति आदि उपकरण निर्जीव होते हुए भी उनके द्वारा चारित्र गुण की साधना हो सकती है । शास्त्रों में तो यहाँ तक कहा है कि लकड़ी के घोड़े से खेलते हुए बालक को दूर हटाने के लिये कोई साधु उसे ऐसा कहे कि "हे बालक ! तेरी लकड़ी हटा," तो मुनि को असत्य बोलने का दोष लगता है। इस दोष से बचने के लिये साधु को ऐसा ही कहना चाहिये कि–'हे बालक, तुम्हारा घोड़ा हटाओ' लकड़ी में कोई साक्षात् घोड़ापन तो है ही नहीं; केवल उसकी असद्भूत स्थापना है तब भी उसे मानना जरूरी है, तो श्री जिन प्रतिमा को, जो श्री जिनेश्वरदेवों की सद्भूत स्थापना है, उसे माने बिना कैसे चल सकता हैं ? __ शक्कर के खिलौने जैसे हाथी, घोड़ा, कुत्ता, बिल्ली, गाय, मनुष्य आदि खाने से पंचेन्द्रिय की हत्या करने का पाप लगता है, ऐसा दया धर्म को समझने वाले सभी मानते हैं । वे सभी वस्तुएँ निर्जीव हैं फिर भी उनमें जीव की स्थापना होने से ही उनको खाने का निषेध किया गया है। इसके सिवाय दूसरा कोई भी कारण ज्ञात नहीं होता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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