SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७७ 'स्थापना' सत्य-लेप आदि के विषय में अरिहंत प्रतिमा, एक आदि अंक विन्यास और कार्षापण आदि के विषय में मुद्राविन्यास आदि, ये सब स्थापना सत्य है। 'नाम' सत्य-कुल की वृद्धि न करता हो तो भी 'कुलवर्धन' आदि नाम, यह नाम सत्य है। 'रूप' सत्य-व्रत का प्राचरण न करता हो और केवल लिंग मात्र से व्रती कहलाये, यह रूप सत्य है । ___ 'प्रतीत्य' सत्य-अनामिका अंगुली कनिष्ठा के संबन्ध से दोघं और मध्यमा के संबन्ध से लत्रु कहलाती है, यह प्रतीत्य सत्य है। 'व्यवहार' सत्य-पर्वत पर घास आदि जलने पर भी यह कहना कि 'पर्वत जलता है', पानी जमने पर यह कहना कि "घड़ा जमता है' तथा उदर होते हुए भी यह कहना कि "अनुदरा कन्या-ये सब व्यवहार सत्य है। भाव सत्य-बगुला सफेद है और भ्रमर श्याम है, ऐसा कहा जाता है। वास्तव में तो उन दोनों में पाँचों वर्ण है, फिर भो वर्ण को उत्कटता के कारण बगूला सफेद व भ्रमर श्याम कहलाता है, यह भाव सत्य है । . 'योग' सत्य-दंड के योग से दंडी, छत्र के योग से छत्री आदि कथन, योग सत्य है। 'उपमा' सत्य-समुद्र के समान तालाब आदि का कथन, उपमा सत्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy