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७६ ठवरणसच्चे, दव्वसच्चे भावसच्चे । तथा दसविहे सच्चे पन्नत्ते ते जहा
• "जरणवयसम्मयठवरणा, नामे रूवे पडुच्च सच्चे य ।
ववहारभावजोगे, दसमे उवम्मसच्चे अ॥१॥"
चार प्रकार के सत्य बताये गये हैं :-नाम सत्य, स्थापना सत्य, द्रव्य सत्य और भाव सत्य तथा श्री तीर्थंकर देवों ने दस प्रकार के सत्य बतलाये हैं। जनपदसत्य, सम्मतसत्य, स्थापनासत्य, नामसत्य, रूपसत्य, प्रतीत्यसत्य, व्यवहारसत्य, भावसत्य, योग सत्य और उपमासत्य ।
इस प्रकार दो चार अक्षरों के नाम की सत्यता और उससे श्री महान फल की सिद्धि होती है, ऐसा शास्त्रकार महापुरुषों ने स्थान स्थान पर प्रतिपादित किया है, तो फिर श्री वीतरागदेव के स्वरूप का भान कराने वालो शान्त आकार वाली भव्य मूर्ति के दर्शन-पूजन आदि से अनेक गुणवाला अधिक फलदाता सिद्ध हो तो इसमें क्या प्राश्चर्य है ?
'जनपद' सत्य-पानी को किसी देश में पय, किसी में पीच्य, किसी में उदक और किसी में जल कहते हैं, यह जनपद सत्य है।
'सम्मत' सत्य-कुमुद, कुवलय आदि पुष्प भी कमल से उत्पन्न होते हैं फिर भी पंकज शब्द अरविंद कुसुम को ही सम्मत है, यह सम्मत सत्य है।
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