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________________ ७५ अकेला नाम निक्षेपा नहीं पर उन नामों के साथ अन्य सभी निक्षेपों का होने वाला बोध है । दूसरा उदाहरण 'कोट' शब्द का लेते हैं । 'कोट' शब्द से पहनने का वस्त्र, नगर की परिक्रमा करती चार दीवारो, शरीर की गर्दन आदि अनेक अर्थों का बोध होता है। परन्तु जब वस्त्र के उद्देश्य से कोट शब्द का प्रयोग होता है तब पीछे के दोनों अर्थों का बोध नहीं होता। इसी प्रकार गढ़ के हेतु से 'कोट' शब्द का प्रयोग करते समय वस्त्र आदि का ज्ञान नहीं होता तथा गर्दन के उद्देश्य से 'कोट' शब्द का प्रयोग करते गढ़ आदि का ज्ञान नहीं होता इसका कारण उन तीनों वस्तुओं के चारों भिन्न निक्षेपा होने के अतिरिक्त क्या है ? यहाँ इतना समझ लेना चाहिये कि बाकी के तीन निक्षेपा उन्हीं के वंदनीय एवं पूजनीय हैं जिनके भाव निपा वंदनीय और पूजनीय हैं । और इसी कारण श्री भगवती, श्री उववाई और श्री रायपसेरिण आदि सूत्रों में श्री तीर्थंकर देव तथा अन्य ज्ञानी महर्षियों के नाम निक्षेपा भी वंदनीय हैं, ऐसा कहा गया है। उन उन स्थानों पर कहा गया है कि "तथा रूप श्री अरिहंत भगवंतों का नाम गोत्र भी सुनने से वास्तव में महाफल होता है।" नाम निक्षेपा का महत्व बताने के लिये श्री ठाणांग सूत्र के चौथे और दसवें ठाणा में भी कहा गया है कि "चउन्विहे सच्चे पन्नत्ते, तं जहा-नाम सच्चे, Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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