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१. नाम निक्षेपा
किसी भी वस्तु के सांकेतिक नाम के उच्चारण से उस वस्तु का बोत्र कराना प्रथम नाम निक्षेपा का विषय है । श्री ऋषभादिक चौबीस तीर्थंकरों के नाम उनके माता पिता ने जन्म समय पर रखे होते हैं । इसमें कारण, उनके गुण नहीं किन्तु केवल “पहचानने का संकेत है। नाम रखने में यदि गुरण ही कारण होता तो सभी तीर्थंकर समान गुरगवाले होने के कारण सभी का एक ही नाम रखना चाहिये था।
समान गुण वालों के भिन्न नाम तो तभी हो सकते हैं जब नाम रखते समय गुण की अपेक्षा आकार आदि की भिन्नता पर भी लक्ष्य दिया जाय । चौबीस तीर्थंकरों के गुण समान होते हुए भी प्रत्येक के आकार, पूर्वापर अवस्था आदि में भिन्नता थी। उसी प्रकार एक हो नाम की जहाँ अनेक वस्तुएँ होती हैं वहाँ भी नाम द्वारा जिस वस्तु विशेष का बोध होता है उसका कारण भी उस वस्तु में रहने वाली गुण, आकार आदि की भिन्नता है । जैसे 'हरि' यह दो अक्षर का नाम है पर उससे अनेक वस्तुओं का संकेत होता । 'हरि' शब्द कहते ही 'कृष्ण, सूर्य, बन्दर, सिंह और घोड़ा' आदि अनेक शब्दों का बोध होना शक्य होने पर भी ऐसा नहीं होकर केवल कृष्ण का हो बोध होता है। इसका कारण उस शब्द को बोलने वाले का अभि'प्राय कृष्ण ही कहने का है। इसी प्रकार सूर्य के ध्येय से 'हरि' शब्द बोलने से केवल सूर्य का ज्ञान होता है पर कृष्णादि अन्य वस्तु का ज्ञान नहीं होता।
____ इससे यह सिद्ध होता है कि अनेक संकेत वाले एक नाम में भिन्न २ संकेतों को बोध कराने की जो शक्ति है उसका कारण
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