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________________ ७२ इसलिए नामादि निक्षेपाविहीन किसी पदार्थ का इस जगत् में अस्तित्व होता ही नहीं । अतः द्रव्यादिक तीनों निक्षेपों को माने बिना केवल भाव निक्षेपों को मानने की बात शश गवत् कल्पित है । जिसका नाम उसी की स्थापना, जिसकी स्थापना उसी का द्रव्य और जिसका द्रव्य उसी का भाव | इस प्रकार प्रत्येक पदार्थ में चारों निक्षेपा एक साथ रहे हुए हैं । २. प्रश्न - प्रत्येक निक्षेपा का विस्तार पूर्वक स्वरूप क्या है ? उत्तर -- किसी भी वस्तु को पहचानने के लिए सर्व प्रथम उसका नाम जानने की आवश्यकता होती है, यह नाम निक्षेपा । नाम जान लेने के पश्चात् उसी वस्तु की विशेष पहचान के लिए उसकी प्रकृति, आकार अथवा स्थापना जानने की जरूरत होती है, यह स्थापना निक्षेपा । उसी वस्तु के संबंध में उससे भी अधिक ज्ञान प्राप्त करना हो तो उसके गुरण दोष बताने वाली उसकी आगे पीछे की अवस्था का निरीक्षण करना पड़ता है, उसको द्रव्य निक्षेपा कहा जाता है तथा इन तीनों निक्षेपों के स्वरूप का प्रत्यक्ष बोध कराने वाली साक्षात् जो वस्तु है, उसे भाव निक्षेपा माना जाता है । भाव निक्षेपा का यथार्थ ज्ञान करने के लिये प्रथम के तीनों निक्षेपों के ज्ञान की आवश्यकता होती है । जंगल में अमूल्य वनस्पतियाँ होते हुए भी जिनके नाम तथा अकारादि का ज्ञान नहीं होता है तो उनके गुणों का भी ज्ञान नहीं हो सकता है । नामादि तीनों निक्षेपा के ज्ञान विहीन श्रात्मा के लिए भाव निक्षेपा को विपरीत रूप से ग्रहण करने की अधिक सम्भावना है । जिस बालक को सोमल अथवा सर्प आदि विषमय वस्तु के नाम, आकार आदि का ज्ञान नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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