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१. नाम निक्षेपा-वस्तु के आकार एवं गुण से रहित नाम, वे नाम निक्षेपा कहलाते हैं ।
२. स्थापना निक्षेपा-वस्तु के नाम तथा आकार सहित परन्तु गुण रहित, वे स्थापना निक्षेपा कहलाते हैं ।
३. द्रव्य निक्षेपा-वस्तु के नाम और प्राकार तथा अतीत और अनागत गुण सहित परन्तु वर्तमान गुण रहित वे द्रव्य निक्षेपा कहलाते हैं।
४. भाव निक्षेपा-वस्तु के नाम, आकार और वर्तमान गुण सहित, वे भाव निक्षेपा कहलाते हैं।
उदाहरण स्वरूप-श्री जिनेश्वर देवों के 'महावीर' आदि नाम, वे नाम जिन : उन तारकों को प्रतिमा, वे स्थापनाजिन : जिन-नाम-कर्म बाँधा हो ऐसे श्री जिनेश्वर देव के जीव, वे द्रव्यजिन : और समवसरण में धर्मोपदेश देने के लिए विराजमान सक्षात् श्री जिनेश्वर देव, वे भावजिन कहलाते हैं। इस प्रकार श्री जिनेश्वर देव के चार निक्षेपा समझना।
इन चार निक्षेपों के अभाव में किसी भी वस्तु का वस्तुपन सिद्ध नहीं हो सकता। जगत् में शश-शृग नहीं तो उसका वाचक शुद्ध शब्द भी नहीं कि जिस शब्द के द्वारा उसका बोध हो सके। जिसका नाम नहीं होता उसकी प्राकृति भी किसी प्रकार बन नहीं सकती कि जिसको देखने से शश-शृंग का बोध हो। जिसका नाम अथवा आकार दोनों नहीं होते उसकी पूर्वापर अवस्था और वर्तमान अवस्था रूप पर्याय के आधारभूत द्रव्य भी नहीं होते और जहाँ 'नाम, स्थापना अथवा द्रव्य' तीनों का अभाव होता है वहाँ वस्तु का भाव या गुण तो हो ही कैसे सकता है ?
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