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मंगल-कामना
"नेत्रानन्दकरी भवोदधितरो श्रेयस्तरोमञ्जरी, श्रीमद्धर्ममहानरेन्द्रनगरी, व्यापल्लताधूमरी । हर्षोत्कर्षशुभप्रभावलहरी, रागद्विषां जित्वरी, मूर्तिः श्री जिनपुङ गवस्य,भवतु,श्रेयस्करी देहिनाम् ॥१॥ श्री जिनेश्वरदेव की मूर्ति, __ भक्तजनों के नेत्रों को पानंद पहुँचानेवाली है, संसार रूपी सागर को पार करने के लिये नाव समान है, कल्याणरूपी वृक्ष की मंजरी जैसी है, धर्म रूप महा नरेन्द्र की नगरी तुल्य है, नाना प्रकार की आपत्ति रूपी लताओं का नाश करने के लिये धूमरी-धूमस जैसी है, हर्ष के उत्कर्ष के शुभ प्रभाव का विस्तार करने में लहरों का काम करने वाली और राग तथा द्वेष रूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कराने वाली है, ऐसी श्री जिनेश्वरदेव को मूर्ति
जगत् के जीवों का कल्याण करने वाली बनो !
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