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________________ ६८ धन का लाभ तथा व्यय दोनों ही कर्म बंध का काररण होते हुए भी मन्दिर आदि बनवाने में इसका उपयोग होने से वह कर्म निर्जरा का कारण बन जाता है । ५. सदा प्रतिमा की पूजा करने से तीर्थयात्रा करने की शुभ भावना रहती है। तीर्थ यात्रा करने से चित्त की निर्मलता, शरीर की निरोगता और दान, शील तथा तप की वृद्धि प्रादि महान लाभ प्राप्त होते हैं । ६. बीमारी वगैरह में सेवा-पूजा नहीं भी हो सके तो भी भावना सेवा पूजा की ही रहती है और ऐसी दशा में कभी मृत्यु भी हो जाय तो भी जीव की शुभ गति होती है । ७. गृहस्थों के आत्मकल्याण के लिये मंदिर और मूर्ति मुख्य साधन हैं । सुविहित शिरोमणि आचार्य भगवान् श्रीमद् हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज फरमाते हैं कि "आरंभ में आसक्त बने हुए, छै: काय जीव के वध से नहीं बचे हुए एवं भवसागर में भटकते गृहस्थों के लिये निश्चित रूप से द्रव्यस्तव ही आलंबनभूत है । इन सब लाभों का विचार करके और कुछ नहीं भी बन सके तो भी श्री जिनेश्वरदेव की प्रतिमा के पूजन के लिये तो प्रत्येक कल्याण चाहने वाले व्यक्ति को तत्पर रहना ही चाहिये । इस मानव जन्म में श्री जिनपूजा की पवित्र एवं कल्याणकारी प्रवृत्ति के आचरण में किंचित् भी प्रमाद करना विवेकी लोगों के लिये उचित नहीं । श्री जिन प्रतिमा और उसकी पूजा के अगणित लाभों को समझने के लिये शास्त्रों में बहुत विवेचन है तब भी मंदबुद्धि वाले लोगों को नीचे के प्रश्नोत्तरात्मक विवेचन से भी बहुत लाभ होना संभव है इसलिये उसे बारंबार पढ़ने और विचारने की अभिशंषा की जाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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