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६. मूर्ति को नहीं मानने से श्री जैनसंघ की एकता को बड़ा आघात होता है तथा एक ही धर्म के माननेवाले व्यक्तियों में धर्म के निमित्त फूट के बीज का बीजारोपण होता है जिससे अन्य लोगों में भी जैन धर्म की हँसी होती है। प्रवचन की मलीनता करवाना, महान् दोष है। इतना ही नहीं पर इससे जैन धर्म के प्रति जैनेतरों का जो आकर्षण है वह भी स्वाभाविक रूप से कम हो जाता है।
प्रतिमा पूजन से होने वाले लाभ : ___ अब श्री जिन प्रतिमा की पूजा से होने वाले लाभों की भी थोड़ी गिनती करलें।
१. सदा पूजा करने वाला व्यक्ति पाप से डरता है तथा पर-स्त्रीगमन प्रादि अनीतिपूर्ण अपकृत्य करने के संस्कार इसकी आत्मा में से धीरे धीरे नष्ट होते हैं।
२. कुछ समय प्रभु के गुणगान करने का अवसर निरन्तर प्राप्त होता है और इससे थोड़ी बहुत अन्तःकरण की शुद्धि होती है।
३. सदा पूजा करने वाले का थोड़ा बहुत द्रव्य भी प्रतिदिन शुभ क्षेत्र में खर्च होता है जिससे पुण्यबंध होता है।
४. अनीति, अन्याय और प्रारम्भ से उपार्जित द्रव्य भी यदि अनीति के त्याग की भावना से तथा पश्चाताप पूर्वक मन्दिर बनवाने के काम में लगाया जाय तो इससे दुर्गति रुकती है। मन्दिर प्रादि बँधवाने से लाखों लोग इसका लाभ लेते हैं।
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