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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र में श्री जिनप्रतिमा का वैयावच्च आदि करने की प्राज्ञा दी गई है। ( यहाँ प्रतिमा के वैयावच्च . से तात्पर्य है इसके अवर्णवाद, उपेक्षा, विराधना आदि को टालना)
श्री कल्पसूत्र में श्री सिद्धार्थ राजा के अनेक याग अर्थात् श्री जिनप्रतिमा की पूजा करने के उल्लेख हैं। ( श्री सिद्धार्थराजा परम सम्यग्दृष्टि श्रावक थे। उनका पशुहिंसा का यज्ञ करवाना संभव नहीं है । श्री भगवती आदि सिद्धान्तों में जहाँ राजा श्रोणिक और महाबलकुमार प्रमुख के अधिकार प्राते हैं वहाँ "हाया कय बलिकम्मा" ऐसे जो उल्लेख किये हुए हैं इस बलिकर्म का अर्थ भी जिनपूजा ही समझना है ) ___ श्री ज्ञातासूत्र में द्रौपदी की पूजा का विस्तृत अधिकार है। . (द्रौपदी परम सम्यग्दृष्टि श्राविका थी। शासन प्रभावना सम्यक्त्व के आठ आचारों में से एक है। श्री जिनप्रतिमा की महोत्सवपूर्वक पूजा भी शासन प्रभावना का तथा शासनउन्नति का एक परम अंग है, ऐसा श्री उत्तराध्ययन आदि सूत्रों में वरिणत है) श्री जिनपूजा में हिंसा अथवा अधर्म नहीं : __ "श्री जिनपूजा में हिंसा होती है" ऐसा कहकर जो उसका निषेध करते हैं उनके लिये भी उनको मान्य बत्तीस आगमों के आधार पर नीचे अनुसार हितशिक्षा है :
जिस २ क्रिया में हिंसा होती है वह यदि त्याज्य है तो सुपात्रदान, मुनिविहार, साधर्मिक-वात्सल्य तथा दीक्षा महोत्सव आदि सभी धर्मकार्य भी त्याज्य ही माने जायेंगे। परंतु श्री
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