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श्री दशवैकालिक सूत्र में देवताओं को मनुष्यों की अपेक्षा अधिक विवेकी बतलाया है तथा उन देवताओं के जीव पूर्वभव में तपस्या और श्रुत की अराधना करके देवलोक में उत्पन्न हुए हैं; अतः उनके कृतकार्य अत्यन्त माननीय हैं, ऐसा प्रतिपादन किया हुआ है ।
श्रावकों के भी प्रतिमा की पूजनीयता के प्रमाण :
बत्तीस आगमों में जैसे देवताओं के श्री जिन प्रतिमा की पूजा करने के उल्लेख हैं वैसे इन्हीं बत्तीस आगमों में मनुष्यों द्वारा की हुई प्रतिमा पूजन के भी अनेक उल्लेख मिलते हैं जिनमें से कई निम्नानुसार हैं :
श्री उववाई सूत्र में ऐसा बताया गया है कि अबंड परिव्राजक और उसके ७०० शिष्यों ने श्री वीतराग को नमन करने की तथा उनकी प्रतिमा को छोड़कर अन्य किसी को नमन नहीं की प्रतिज्ञा की थी ।
श्री उपासक दशांग सूत्र में यह बताया गया है कि आनन्दश्रावक ने अन्यतीर्थी अथवा अन्य देवी देवता तथा उनकी प्रतिमात्रों को वन्दन नमस्कार आदि नहीं करने की प्रतिज्ञा की थी ।
श्री भगवती सूत्र में असुरकुमारदेव सौधर्म देवलोक तक्र जाते हैं । उस समय श्री अरिहंत, उनके चैत्य तथा अणगार मुनि, इस प्रकार तीनों का शरण स्वीकार करते हैं, ऐसा वर्णन किया हुआ है ।
श्री समवायांग सूत्र में प्रानंदादि दस श्रावकों के चैत्य आदि का वर्णन किया हुआ है ।
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