________________
५४ १. श्री अनुयोगद्वार सूत्र में प्रत्येक पदार्थ के कम से कम 'नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव' ये चार निक्षेपा करने की आज्ञा दी गई है।
. २. श्री ठाणांग सूत्र में चार तथा दस सत्यों का निरूपण किया गया है तथा इसमें स्थापना को भी सत्य रूप में स्वीकार किया गया है।
- ३. श्री आवश्यक सूत्र में चारों निक्षेपों से श्री अरिहंत का ध्यान करने का आदेश है जिनमें चतुर्विंशतिस्तव से नाम और द्रव्य निक्षेप से तथा चैत्यस्तव द्वारा स्थापना निक्षेप से श्री जिनेश्वर देव की आराधना दर्शाई गई है।
४. श्री भगवती सूत्र के प्रारम्भ में ज्ञान की स्थापना के रूप में श्री गणधर देवों ने श्री बंभी लिपी को नमस्कार किया हैं
५. श्री दशवकालिक सूत्र में स्त्री की प्रतिकृति भी देखने की साधु को मनाई कर स्थापना के शुभाशुभ प्रभाव स्पष्टरूप से प्रतिपादन किया हुआ है ।
६. श्री भगवती सूत्र के बीसवें शतक के नवे उद्देशा में लब्धिधर चारण मुनियों द्वारा शाश्वत और अशाश्वत जिन प्रतिमाओं की, की हुई वंदना का स्पष्ट उल्लेख है ।
७. श्री समवायांग सूत्र में चारण मुनि श्री नन्दीश्वर द्वीप में चैत्यवंदना के लिये जाते हैं तब सत्रह हजार योजन ऊर्ध्व गति करते हैं, इसका स्पष्ट वर्णन है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org